माँ बापों की माथापच्ची | MA BAPON KI MATHA PACCHI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
85
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चूल्हे पर रखने जा रही थीं कि यह् उनके हाथ से छूट गईं। इस पर है
नाराज़ हो गई और मुझ से कहने लगीं : 'कम्बख्त, तुम इसी तरह मु
परेश्ञान करते रहते हो ! लो, अब यह ताई फूंट गई ! बुध मैं रोटी कसे
बनाऊँ ? यों कहते हुए उन्होंने मुझ को एक धप्पा मार दिया ।
:11:
तुम रवि को क्यों सार'रहे हो ?
माँ : रमेश ! तुम रवि को क्यों मार रहे हो ?
रमेश : 'इसलिए कि तुम मुकको मार रहीं थीं ।'
0
दो रीतियाँ
(1) »
आहा ! तुम खेल कर आ गईं ? आज तुमने कौन-कौन से खेल खेले !
सुनो, अब ज़रा देर के लिए मेरे काम में हे करोगी ॥ यहाँ यह जो जुठन
पड़ी है, इसको तुम साफ कर लो । इसी बीच मैं साथ संवार लेती हैं। फिर
तुम इन घुले हुए कपड़ों को समेट लेना। बाद में हम घुमने चलेंगी। क्या
आज तुमको कोई सबक़ दिया है ? रात ब्यालू के बाद तुम अपना सबक ल्दी
ही तैयार कर लेना । फिर सुबह के लिए हम थोड़ी दाल बीन लेंगी। पहले
तुम अपना सबक़ तैयार कर लेना, जिससे तुमको थोड़ी फुरसत भौर आराम
मिल जाए ।
हु (2)
अब तुम घूम-भटक कर आई हो ! तन काम, न काज, बस, सारा दिन
घृमना, घूमना और धूमना |] लो, अब यह जुठन साफ करो। सुबह से अब
तक घर की सफाई नहीं हुई है। घर में फाड़, कौन लगाएगा ? देखो, ये
कपड़े कसे फैले हुए हैं। इनको जरा समेट कर तो रख दो। बस, तुम एक
पढ़ना जानती हो, और पट-पट जबाब देना सीख गई हो ! मुझको तुम्हारी
यह पढ़ाई नहीं चाहिए | पढ़कर तुमको कौन अपनी रोटी कमानी है था बच्चों
को पढ़ाने जाना है? कल से पढ़ने मत जाना । और जाना ही हो, तो पहले
चर का काम और बाद में पढ़ाई :
28 माँ-बापों की माथापच्ची
:13 :
रात का आनन्द
बाबूजी बाज़ार से घर आए हैं। उनको आया देखकर घर के नन्हें
बच्चे उनको घेर कर खड़े हो जाते हैं।
पूछते हैं : 'बाबुजी ! आप बाज़ार से क्या-क्या लाए हैं? मेरे लिए
गन्ना तो लाए ही होंगे ? और, मेरे लिए लड्डू भी छाए होंगे ?'
बाबूजी अपना छाता और अपने जूते एक तरफ रख देते हैं। फिर सिर
पर पहनी पग्रड़ी उतारकर पसोना पोंछते हैं । बाद में अपने दुपट॒टे के पल्ले में
बंधी पोटली खोलते हैं। बच्चे हँसते-मुस्कुराते हुए अमरूद खाने लगते हैं।
नन्हा रमेश लट॒टू लेकर उससे खेलने लगता है। बड़का विनोद लपफककर नई
बाल पोथी ले लेता है, और उसको पढ़ने छगणता है। तभी ननन््हीं मुन्नी अपने
लिए लाया गया फ्रॉक लेकर रसोईघर की तरफ भागती है, और वहाँ काम
कर रही अपनी माँ को अपना नया फ्रॉक दिखाती है |
रात के भोजन के बाद माँ कहती हैं! “अब तुम सब यहाँ आ जाओ |
आओ, हम कहानी सुनेंगे ।'
मुन्नी बीच में बंठती है। वाक़ी के सब बच्चे उसको घेर कर बैठ
जाते हैं ।
माँ कहानी शुरू करती हैं :
'एक था राजा ।
खाता था खाजा।
घी थोड़ा ।
मटका फोड़ा ।' सुनकर सब बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं ।
रश्मि ते कहा : मां ? बुढ़िया किसकी ? बाली बह कहानी सुनाइए तल ? !
मां ने आस्ते-आस्ते कहना शुरू किया---
'एक थी बुढ़िया।'
क्षण भर के लिए सब बच्चे चुपचाप हो गए । सब एकटक मां की
तरफ देखने लगे । अपनी आंखों की पलकें कपकाना भी किसी को पसन्द नहीं
माँ-बापों की माथापच्ची 29
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