मोंटेसरी-पध्दति -भाग 2 | MONTESSORI METHOD PART 2

MONTESSORI METHOD PART 2 by गिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृष्टि से भी ये खिलौने बहुमूल्य हैं। अलग-अलग उम्र में बालक कैसे-कैसे खिलौने बनाने में रुचि लेते हैं, इस बात का ज्ञान मनोविज्ञानवेत्ता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। बालक कलाकृतियों के द्वारा शिक्षक ज्ञात कर सकता है कि कैसा समान रखा जाना उसके लिए लाभकारी होगा | जो बच्चे मिट्टी के रचनाकार्य द्वारा श्रेष्ठ अवलोकनकर्ता के गुण व्यक्त करते हैं वे खुद भी अपने आसपास की दुनिया का अवलोकन सुन्दर रीति से कर सकेंगे। मिट्टी के काम द्वारा बच्चों को सहज ही ऐसे क्षेत्र की तरफ ले जाया जा सकता है कि जहां उनके विभिन्न इन्द्रिय-विषय अनुभव एवं विचार अधिकाधिक स्पष्ट हो सकें | जो बालक स्वयं-लेखन- तक शीघ्र पहुंच जाते हैं वे माटी के काम में भी कुशल होते हैं। जिन बालकों के अवलोकन में कच्चापन हो और जिनके आकारों में स्पश्ता नहीं होती, शिक्षक को ऐसे बालकों को उनके आसपास की दुनिया में ले जाना चाहिए और विभिन्न पदार्थों की तरफ उनकां ध्यान खींचना चाहिए। इन्द्रिय-विकास के द्वारा बालक में तरह-तरह की विशिष्ट क्षमताएं विकसित होती हैं--उपर्युक्त साधनों द्वारा उन्हें व्यापक वातावरण प्रदान किया जाता है | भौमितिक आकृतियों का वर्गीकरण (भुजाए, कोण, मध्यबिन्दु तथा आधार) भौमितिक आकृतियों के वर्गीकरण का शिक्षण छोटे बालकों को नहीं दिया जा सकता। डॉ. मोंटेसरी ने एक खेल शुरू करके उसके द्वारा बालकों को लंब-चौरस की पृथकूकृति का विचार समझाने का प्रयास किया है। खेल के लिए जो लम्ब-चौरस चुना गया है वह टेबिल के ऊपर वाला तख्ता है। बालक को इस टेबिल पर ही भोजन करने वालों के लिए प्रबंध करने को कहा जाता है। भोजन के उपकरण यथा--चम्मच, रकाबी, नमक, अचार; रूमाल आदि बालगृह में रखे जाते हैं। शिक्षक टेबिल की प्रत्येक लम्बी भुजा की तरफ दो-दो तथा प्रत्येक छोटी भुजा की तरफ एक-एक बैठने वाले का स्थान तय॑ं करके छह जनों के लिए प्रबंध कराता 2& मोंटेसरी-पद्धति ५२, बालक अपने हाथ में चीजें उठाता है और शिक्षक के निर्देशानुसार 5 रखता जाता है। शिक्षक कहता है, यह अचार की रकाबी टेबिल के बीचों-बीच रखो | यह रूमाल टेबिल के एक कोने पर रखो । यह रकाबी छोटी भुजा के मध्य में रखो। तब शिक्षक बालक पा दूर हटाकर टेबिल की ओर दृध्पिात करते हुए पूछता है : “इस कोने में क्या बाकी है ? इस पक्ष में दूसरे प्याले की जरूरत है ? दोनों छोटी भुजाओं की तरफ सभी कुछ आ गया ? चारों कोनों में कुछ कम तो नहीं पड़ता ? ये री सुनकर बालक जरूरत की चीजें रख देता है, पर साथ ही साथ कोनों और भुजाओं आदि की तरफ उसका थोड़ा-थोड़ा ध्यान जाता है। छह वर्ष से छोटे बालकों को इससे ज्यादा नहीं बताया जा सकता। अलजबत्ता, उसे बोल-बताकर तथा बिठाकर तो उससे भी अधिक समझाया जा सकता है, पर उसका कोई मतलब नहीं निकलता। रंग की इन्द्रिय के शिक्षण की व्यापकता : रंग की तख्तियों के द्वारा रंग की इन्द्रिय का विकास होता है, पर चित्र बनाने से उस विकास को व्यापकता मिलती है। अतः बालकों के बन हमने विविध प्रकार के रेखाचित्र बनवाए हैं, जिनमें वे शुरुआत में पेंसिलों से रंग भरेंगे और बाद में ब्रुश से। बालकों को जैसे रंगों की जरूरत होती है वे रंग (पानी के) बना लेते हैं। रेखाचित्रों में पहले फूल, फिर पतंगे, फिर वृक्ष, फिर प्राणी, फिर घास, आकाश, मकान तथा मनुष्याकृति वाले चित्र आएं, तब प्रकृति के चित्र आएं-ऐसा एक क्रम रखा गया है। रंगों को लेकर बालकों के विकास का अता-पता उन रेखाचित्रों को देखने से लगाया जा सकता है। रंग-चयन के लिए बालक स्वतंत्र हैं। यदि वे तनों में लाल रंग भरें या गाय में की रंग भरें तो हमें समझ लेना चाहिए कि अभी उनकी अवलोकन-शक्ति में न्यूनता है, पर इस बारे में किया क्या जाए, यह चर्चा ऊपर के पृष्ठों में की जा चुकी है। इन रंगों तथा रंग की तख्तियों के द्वारा हम सहज की ज्ञात कर सकेंगे कि बालक का रंग-विकास कैसा हो पाया है। वे हल्के या मिलते-जुलते रंगों का चयन करते हैं या गहरे, परस्पर विरोधी रंग चुनते बुद्धि का शिक्षण 29 .




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