जो शिलाएं तोड़ते हैं | JO SHILAYEN TODTE HAIN

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केदारनाथ अग्रवाल -KEDARNATH AGRAWAL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह जो नृत्यातुर बालाएँ. 8.11.1947._ 172 यह जो सुंदरता सजती है 8.11.1947._ 173 यह जो अंगारे जलते है 9.11.1947.._ 174 यह जो कौआ मोर बना है 9.11.1947._ 175 अंधकार के उर में लाखों दीप जले हैं 10.11.1947.._ 176 यह जो दीपक आज जले हैं 11.11.1947.._ 17 यह जो आज समीर प्रकंपित 12.11.1947.._ 178 यह जो तरुओं की पत्रावलि 12.11.1947.._ 179 काली मिट्टी हल से जोतो... 12.11.1947._ 180 दीपदान की ज्योति हमारी 12.11.1947.._ 181 यह समीर जो रुप कुंज का मधुपायी है 13.11.1947..._ 182 यह जो प्रात समीर किरन से 14.11.1947._ 183 यह सुमेरू जो महामेक से टकराता है. 14.11.1947._ 1& प्रात का सूरज. 26.12.1947. 185 भोर होवे. 26.12.1947. 186 स्चर्ण सबेरा 26.12.1947._ 19 विष-बीज 26.12.1947.._ 188 चिड़ीमार 27.12.1947..._ 189 दीपक और स्वप्र 28.12.1947..._ 190 काश्मीर 28.12.1947..._ 19 जोनी 28.12.1947. 193 महकती जिन्दगी 2.8.1948 195 जो शिलाए तोड़ते हैं 9.11.1948.._ 198 1िण जो शिलाएँ तोड़ते हैं / 15




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