लातीनी अमेरिका की नई खोज - मई 2013 | LATINI AMERICA KI NAYI KHOJ - MAY 2013

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कई फर्क हैं । चावेज जितने अमरीका-विरोधी थे, उतना विरोध इन्होंने नहीं किया। लेकिन फिर भी इन सबको एक जगह लाकर लातीनी अमरीका को संयुक्त राज्य अमरीका के वर्चस्व से मुक्त करने में चावेज को काफी हद तक सफलता मिली। इसके पहले ' अमरीकी राज्यों के संगठन' में संयुक्त राज्य अमरीका की ही चलती थी | इसके जवाब में चावेज ने सबसे पहले अमरीका का बोलीवारवादी गठबंधन' (अल्बा) बनाया जिसमें वेनेजुएला, क्यूबा, बोलीविया, एक्वादोर, निकारगुआ, डोमीनिका, होंडुरास आदि शामिल हुए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के चंगुल से निकलने के लिए ' दक्षिण का बैंक' (बैंक ऑफ साउथ) की स्थापना की और डॉलर की जगह 'सुक्रे' नामक अंतरराष्ट्रीय लेन देन की नई मुद्रा बनाई। निजी टीवी चैनलों के दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए लातीनी अमरीका के लिए 'टेलीसूर' नामक चैनल शुरु किया। अपनी मौत के एक साल पहले चावेज को “लातीनी अमरीकी व कैरीबियन देशों का समुदाय ' (सेलेक) बनाने में सफलता मिली | यहां तक कि कोलंबिया जैसा देश भी इसमें शामिल हुआ, जो वैसे संयुक्त राज्य अमरीका का पिट्ट है और बीच में जिसका वेनेजुएला से काफी मनमुगाव हो गया था। चावेज चाहते थे कि लातीनी अमरीकी देश संयुक्त राज्य अमरीका पर निर्भरता और उसके प्रभाव से मुक्त हों, उनमें आपसी समन्वय और सहयोग बढ़े और वे नवउदारवादी नीतियों को छोड़ें, तभी वे अपने देश के अंदर भी समाजवादी व्यवस्था को चला पाएंगे। चावेज की कमियां किसी भी नई व्यवस्था की तरह चावेज द्वारा स्थापित व्यवस्था भी संपूर्ण और आदर्श नहीं थी। उसमें कई कमियां भी हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि यह बहुत ज्यादा व्यक्ति केंद्रित है। यह बहुत कुछ चावेज के व्यक्तिगत करिश्मे पर आधारित रही है। चावेज के जाने के बाद यह कितनी स्थाई हो पाएगी और इसमें कितनी ऊर्जा रहेगी, यह देखना अभी शेष है। दूसरी बात यह है कि यह पेट्रोल की कमाई पर बहुत ज्यादा निर्भर है, इसलिए इसे आसानी से दूसरी जगह दुहराया नहीं जा सकता तीसरी बात यह है कि वेनेजुएला में भ्रष्टाचार और अपराध अभी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इन सब के बावजूद इसमें कोई दो राय नहीं कि चावेज ने अपने 14 साल के कार्यकाल में एक मिसाल कायम की है, जो नवउदारवाद के खिलाफ लड़ने वालों और समतामूलक समाज बनाने की इच्छा रखने वालों के लिए काफी मददगार है। इससे भरोसा मिला है कि दुनिया विकल्पहीन नहीं है और समाजवाद की बात पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुई है। भारत की परिस्थितियां भी वेनेजुएला से मिलती जुलती हैं। यहां भी असंगठित क्षेत्र काफी बड़ा, वंचित और दबा हुआ है। उम्मीद की जा सकती है कि भारत में भी नवउदारवाद की आंधी को रोका जा सकता है और व्यवस्था परिवर्तन हो सकता है। पर क्या हमें उसके लिए किसी चावेज के आने तक इंतजार करना पड़ेगा? हिम्मत मत हारना बात चावेज के शासनकाल के शुरुआती सालों की है 12002 में उसके तख्तापलट की कोशिश नाकाम रहने पर, दिसबर में विरोधियों ने पेट्रोल उद्योग की भ्रष्ट यूनियन के साथ मिलकर व्यापक हड़ताल कर दी। यह उद्योग वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। इससे बड़ा संकट पैदा हो गया। निर्यात प्रभावित होने के साथ देश में भी तेल व गैस की भारी किल्लत हो गई। चावेज की सरकार के लिए यह परीक्षा की कठिन घड़ी थी। मशहूर वामपंथी लेखक और पत्रकार तारिक अली के यह पूछने पर कि क्‍या वे कभी निराश हुए थे, चावेज ने यह किस्सा सुनाया- “दो चीजों ने मेरे मनोबल को बनाए रखा। एक तो वह समर्थन था जो हमे देश भर में मिला। मैं दफ्तर में बैठे-बैठे तंग आ गया। इसलिए एक सुरक्षा गार्ड और दो साथियों के साथ मैं लोगों से बात करने और खुली हवा में सांस लेने के लिए निकल पड़ा | लोगों के रिस्पॉन्स ने मुझे हिला दिया | एक महिला मेरे पास आई और बोली, 'चावेज मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूं! । मैं उसके साथ उसके छोटे से मकान में गया | दिखो, मैं चूल्हा जलाने के लिए क्‍या इस्तेमाल कर रही हूं... पलंग का पटिया | कल मैं इसके पाये जलाऊंगी, परसों टेबल और फिर कुर्सियां व दरवाजे जलाऊंगी | हम किसी तरह काम चला लेंगे, लेकिन तुम हिम्मत मत हारना, झुकना मत।”? 16 सामयिक वार्ता # मई-जून 2013




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