प्रसिध्द कहानियाँ | BEST STORIES IN HINDI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हठात दया-सी हो आई उस पर | एक अन्याय-सा होता लगा |
टटोला...
“तू थक गया होगा न!
न... नहीं तो... बल्कि तुम ज्यादा थकी लग रही हो... मैं तो अभी कितनी भी देर बातें कर सकता हूँ तुमसे...
उफ! कितनी जद्दोजहद के बीच से की गई एक ईमानदार कोशिश | “तुझे सब कुछ बदला-सा लग रहा होगा न! वह
झिझका, सहमा... अं? हैं 5५ आँ ...थोड़ा-थोड़ा | बहुत दिनों बाद लौटा हूँ न |
उन्हें लगा, पूछ पाता तो शायद यह भी पूछता और कितने पीछे लौटा ले जाना चाहती हो तुम मुझे... आगे-पीछे एक साथ
चलने में मुश्किल भी तो पड़ती है... तुम्हारे लिए आसान हैं माँ, निरंतर पीछे की अतीतगामी यात्राएँ .. क्योंकि वर्तमान और
सामने आते भविष्य का अकेलापन और सन्नाटा तुम्हें आतंकित करता है... इसलिए तुम निरंतर चहल-पहल भरे अतीत में
ही पनाह ढूँढ़ती हो।... लेकिन मैं. .. मैं तो सिर्फ अतीत या वर्तमान में नहीं रूक सकता न! मेरे लिए तो समय और उम्र
चढ़ते हुए सूरज की सीढ़ियाँ हैं |
बेल बजी -- सिर्फ पिता रह गए पति लौट आये थे |... एक छुटकारे की सी साँस, हल्की हो आई। लेकिन तक्षण अपने
आप से कोई चोरी-सी करते पकड़ जाने का अहसास!
हल्कापन यानी छुटकारा? --
अपने बहुत अच्छे बेटे के पास से हट आने पर!
वह साढ़े तीन दिन रहा |
वे चिमटे, कलछी से हाथ जलाती, पुए तलती रहीं | बादाम की कतलियाँ बुरकती रहीं। उससे कपड़े बाथरूम में छोड़ देने
की जिद करती रहीं |
उसे, सात साल से छूटी कपड़े की आलमारी में कपड़े टॉगते, शीशे में कंधी करते देखती रही... देख-देखकर निहाल होती
रहीं। जगते में ही नहीं सोते में भी... बीच-बीच में कमरे में झाँक, देख जाती रहीं |
लेकिन अंतिम दिन, आधी रात जब उद्विग्न पिता ने डूबी-सी आवाज में उनके कंधे पर हाथ धर कर कहा -- “... कैसा
लगता है न... कल चला जाएगा वह...
तो उनकी आँखों में जो दो भरपूर आँसू डबडबा आये, उन्हें पिता ने शायद नहीं समझा | पिता ने समझा, यह तो होना ही
था। बेटा जाता है सुबह, फिर न जाने कितने सालों के लिए!
इसलिए दिलासे की थपकी दी... घबराओ नहीं, फिर से कुछ ही सालों में लौटकर आयेगा न, जैसे इस. ..
छाती पर जैसे कोई समंदर हरहरा उठा। पछाड़ खा-खाके लहरें चकनाचूर होती रहीं... बोल पातीं तो कहतीं... नहीं... और
कितनी बार लौटायेंगे हम उसे और कहाँ तक ...
आढ्ा मोहन दघाकेश
समवंग]व1800%3071176 .17010ठ850070 . ८०छ॥
ध्रहश 97 ॥/ 61 फल ला 1716
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