माता पिता से | MATA PITA SE
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
77
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहीं बालक की हंसी में अमृत तो नहीं भरा हैं '
लगता है कि माँ इस अमृत से ही सदा तृप्त बनी रहती होगी ।
जब बालक आधी रात में जागता है तो उसके साथ घर के सब लोग
भी आधी रात में जाग उठते हैं ।
जब जाग॒कर बालक खेलने लगता है, तो धर के लोग भी उसके साथ
खेलने में लीन हो जाते हैं !
बालक के हँसने पर सब हंसते हैं ।
बालक के साथ बूढ़े भी हँसने का आनन्द लूट लेते हैं!
बड़े बालक छोटे बालकों के साथ हँसकर अपने बचपन की याद को
ताजा कर लेते हैं !
नौजबान लोग बालक की हंसी में नहाकर अपने प्रेम-जीवन की
तैयारी करते हैं ।
माता-पित्ता तो बालक की हँसी में अपने नए जन्म का आनन्द लूटते
रहते हैं ।
बालक देवलोक के भूले-भटके यात्री हैं |
बालक तो गृहस्थों के अनमोल मेहमान हैं। '
: जब इन भेहमानों की सही सेवा-सुश्रुषा नहीं हो पाती, तो सारा
गृहस्थाश्रम ही चौपट हो जाता है। मे
लक्ष्मी बालक के कंकुम के-से लाल-लाल परों से ही चिपकी रहती है।
बालक के प्रफुल्ल मुख में प्रेम संतत समाया रहता है ।
बालक की मीठी हँसी वाली मधुर नींद में शान्ति और गम्भी रता छिंदको
रहती है । द
बालक की तोतली बोली में कविता बहती रहती है |
खेद इसी बात का है कि वह दिव्य कविता मनुष्यों की इस दुनिया में
लम्बे समय तक टिंक नहीं पाती है ।
“हल
30 माता-पिता से
कभी आपने सुना है कि किसी ने बालक की बातों में व्याकरण को
भूलें खोजी हैं !
बालक के साथ बात करते समय तो बड़े लोग भी खुशी-खुशी व्याकरण
के कठोर नियमों को त्याग देते है, और अकसर व्याक रण-विहीन भाषा बोलने
के विफल प्रयत्न करते हैं । द द
जब से बालक व्याकरण-सम्मत बोली बोलने लगता है, तबसे उसकी
बोली की मिठास घटने लगती है ।
जिनको बालक प्यारा न लगता हो, वे तो ईश्वर के निरे बत्रु ही हैं ।
बालक को 'गन्दा' कहकर उसकी ओर न देखने वाले लोग अभागे नहीं
हैं, तो और क्या हैं ?
बालक तो इन अषामों की तरफ भी अपने हाथ फंलाता ही है ।
हब्शी को तो अपने बच्चे प्यारे लगते ही हैं, किन्तु जो प्रभु-प्रेमी होते
हैं, वे हब्शी के बच्चों से भी प्यार करते हैं ।
कई लोग बच्चों से दूर ही दूर रहना चाहते हैं ।
भला, हम उनको पामर न कहें, तो और क्या कहें !
बालक मात्ता-पिता की आत्मा है ।
बालक घर का आभूषण है|
बालक आँगन की शोभा हैं ।
बालक कुल का दीपक है !
बालक तो हमारे जीवन-सुख की प्रफुल्ल और प्रसन्त खिलती हुईं कली
है ।
थदि आप शिक्षक बनना चाहते हैं तो आप बालकों का ही अनुसरण
, कीजिए ।
यदि आप मानस-शास्त्री बनना चाहते हैं, तो आप बालकों का ही
अवलोकन कीजिए ।
बाल-महिमा 31
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