माता पिता से | MATA PITA SE

MATA PITA SE by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaगिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहीं बालक की हंसी में अमृत तो नहीं भरा हैं ' लगता है कि माँ इस अमृत से ही सदा तृप्त बनी रहती होगी । जब बालक आधी रात में जागता है तो उसके साथ घर के सब लोग भी आधी रात में जाग उठते हैं । जब जाग॒कर बालक खेलने लगता है, तो धर के लोग भी उसके साथ खेलने में लीन हो जाते हैं ! बालक के हँसने पर सब हंसते हैं । बालक के साथ बूढ़े भी हँसने का आनन्द लूट लेते हैं! बड़े बालक छोटे बालकों के साथ हँसकर अपने बचपन की याद को ताजा कर लेते हैं ! नौजबान लोग बालक की हंसी में नहाकर अपने प्रेम-जीवन की तैयारी करते हैं । माता-पित्ता तो बालक की हँसी में अपने नए जन्म का आनन्द लूटते रहते हैं । बालक देवलोक के भूले-भटके यात्री हैं | बालक तो गृहस्थों के अनमोल मेहमान हैं। ' : जब इन भेहमानों की सही सेवा-सुश्रुषा नहीं हो पाती, तो सारा गृहस्थाश्रम ही चौपट हो जाता है। मे लक्ष्मी बालक के कंकुम के-से लाल-लाल परों से ही चिपकी रहती है। बालक के प्रफुल्ल मुख में प्रेम संतत समाया रहता है । बालक की मीठी हँसी वाली मधुर नींद में शान्ति और गम्भी रता छिंदको रहती है । द बालक की तोतली बोली में कविता बहती रहती है | खेद इसी बात का है कि वह दिव्य कविता मनुष्यों की इस दुनिया में लम्बे समय तक टिंक नहीं पाती है । “हल 30 माता-पिता से कभी आपने सुना है कि किसी ने बालक की बातों में व्याकरण को भूलें खोजी हैं ! बालक के साथ बात करते समय तो बड़े लोग भी खुशी-खुशी व्याकरण के कठोर नियमों को त्याग देते है, और अकसर व्याक रण-विहीन भाषा बोलने के विफल प्रयत्न करते हैं । द द जब से बालक व्याकरण-सम्मत बोली बोलने लगता है, तबसे उसकी बोली की मिठास घटने लगती है । जिनको बालक प्यारा न लगता हो, वे तो ईश्वर के निरे बत्रु ही हैं । बालक को 'गन्दा' कहकर उसकी ओर न देखने वाले लोग अभागे नहीं हैं, तो और क्या हैं ? बालक तो इन अषामों की तरफ भी अपने हाथ फंलाता ही है । हब्शी को तो अपने बच्चे प्यारे लगते ही हैं, किन्तु जो प्रभु-प्रेमी होते हैं, वे हब्शी के बच्चों से भी प्यार करते हैं । कई लोग बच्चों से दूर ही दूर रहना चाहते हैं । भला, हम उनको पामर न कहें, तो और क्या कहें ! बालक मात्ता-पिता की आत्मा है । बालक घर का आभूषण है| बालक आँगन की शोभा हैं । बालक कुल का दीपक है ! बालक तो हमारे जीवन-सुख की प्रफुल्ल और प्रसन्‍त खिलती हुईं कली है । थदि आप शिक्षक बनना चाहते हैं तो आप बालकों का ही अनुसरण , कीजिए । यदि आप मानस-शास्त्री बनना चाहते हैं, तो आप बालकों का ही अवलोकन कीजिए । बाल-महिमा 31




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