उक्राईनी लोक कथाएँ | UKRAINI LOK KATHAINSOVIET CHILDREN'S BOOK

UKRAINI LOK KATHAINSOVIET CHILDREN'S BOOK by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भेडिया भी डर के मारे निकल भागा। “नहीं, खरगोश , मैं उसे नहीं भगा सकता। उस जानवर से 9 डर लगता है|! भेड़िया भी दुम दबाकर खिसक लिया। क्‍ खरगोश फिर पहले की तरह पेड के नीचे बैठकर रोने-पीठने लगा। अचानक उधर से लोमड़ी गुज़री, उसने खरगोश को रोता हुआ देखकर पूछा: “अरे, खरगोशवे, रो क्यों रहा है?” “ लोमड़ी दीदी, मेरी झोंपडी में एक खतरनाक जानवर घुसा बैठा है! मैं बेघर हो गया हूं। रोऊं न तो क्‍या करूँ? / और लोमड़ी बोली: “मैं उसे निकाल बाहर करूंगी! “ भालू ने कोशिश की, लेकिन हार मान गया, भेडिये ने भी कोशिश की , लेकिन दुम दबाकर भाग गया! आख़िर तुम उसे कैसे भगा सकती है 11 “देख लेना , अगर निकाल बाहर न करूं! ” लोमडी ने आवाज़ लगाई: “ खरगोश की भोंपडी में कौन है? तब बकरी अलावधर से बोली: / सबक बकरी , तकक्‌ बकरी , बाल है मेरी उधड़ी-उधडी | उल्हा-पुल्टा मेरा काम, तीन टके है मेरा दाम। दुम को अपनी हिला-हिलाकर , भारुंगी मैं रुला-दंलाकर , तुम्हें रॉदकर , कुचल-कुचलकर , सींग मारकर , तुम्हें फाडकर ! लडना-भिड़ना मेरा काम , होगा तेरा काम तमाम ! लीमडी थर-थर कांपने' लगी और वहां से निकल भागी। 16




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