काका हाथरसी , विशेष सितम्बर 2011 | KAKA HATHRASI SPECIAL SEP 2011

KAKA HATHRASI SPECIAL SEP 2011 by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान को ज्ञापन पंद्रह अगस्त को- हास्यरसी कवियों का लेकर डेपूटेशन पहुँच गए हम बेकुंठधाम स्टेशन। गेट पर खड़ा हुआ दरबान हो गया हक्‍्का-बक्का घुस गए अंदर देकर उसे धक्का। नारे लगाए- जय नारायण, जय परमात्मा, ज्ञापन लेकर आई हैं कुछ आत्मा। अंदर से आवाज़ आई- 'क्या शोर-शराबा है, कौन हैं ये दुस्साहसी?' हमने कहा- “काका हाथरसी, बेधड़क बनारसी, अल्हड़-भुल्लड्, डंठल-कुल्लड, सनीचर-फटीचर-भौंपू-हुल्लड।' “किसलिए आए हें?' “क्रांतिकारी कल्पनाएँ लाए हें।' सांसारिक नर-नारी- नवीनता की ओर बढ़ रहे हें, आप बेख़बर होकर क्षीर-सागर में शयन कर रहे हें। 16 ब् शोध-दिशा « जुलाई-सितंबर 2011 यही दशा रही तो विरोधी दल हथिया लेगा सत्ता, कट जाएगा बैकुंठ से आपका पत्ता। जन-गण-मन पर डालने के लिए इंप्रेशन नोट कीजिए हमारे सप्तसूत्री सजेशन- 1 मानव-बॉडी का वर्तमान ढाँचा (“आउट ऑफ़ डेट' हो गया है, इसे बदल दीजिए संविधान में संशोधन कौजिए। 9) मनुष्यों को दे दिए हैं आपने दो-दो कान इनका दुरुपयोग करता है इंसान, किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेता है इस कान से सुनकर उस कान से निकाल देता है। आइंदा के लिए नोट कीजिए, एक आदमी को, एक ही कान दीजिए। 3 कान के बदले में-- सिर के चारों ओर आँखें फिट कर दीजिए चार सौंदर्य को मुड-मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा धर्मावतार। 4 नेत्रों की ज्योति घटती जा रही है, इनमें एक्सरे वाले, ऐसे लैंस कीजिए एडजस्ट, नेताओं की अंतरात्मा दीख सके स्पष्ट। फिर, जनता को धोखा नहीं दे सकेंगे, दलबदलू वोट नहीं ले सकेंगे।




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