सदाचार - विशेष अंक | SADACHAR ANK - SPECIAL ISSUE - GITA PRESS
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ # घममूलं निपेवेत सदाचारमतन्द्रितः #
कु कु सदाचार
विश्वके अभ्युदयका मुठ सोत--सदार
[ अनन्तश्रीविभूषित जगद्रु शंकराचार्य ऊर्ध्वाम्नाय श्रीकाशीसमदपीठाथीश्वर खामी श्रीशंकरानन्द सरखतीजी
महाराजका प्रसाद |
सदाचार व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रके अम्युदयका
मल स्रोत है | यदि समाजमें सदाचार अग्रतिष्ठित हो
जाता है तो राष्ट्रम कदाचार खभावतः बढ़ जाता है ।
सदाचार तथा कदाचार परस्परविरुद्ध हैं | सदाचारका
परिणाम परस्परविश्वास, सौमनस्थ, सुख एवं शान्ति
है । कदाचारका परिणाम समाज या राष्ट्रमें स्वत्र
परस्पर अविश्वास, कलह, देन्य तथा अशान्ति
है | वर्तमानमें हमारा राष्ट्र शनेःशने: कदाचार-
रोगसे ग्रस्त होता जा रहा है | परिणाम भी
सुस्पष्ट परिलक्षित हो रहा है | अधिकतर धार्मिक,
राजनीतिक तथा सामाजिक संस्थाएँ असदाचारसे ग्रस्त हैं,
अतः राष्ट्रकी शान्ति भी उत्तरोत्तर भन्गन होती जा रही है ।
कहींपर स्थिरता या मर्यादाका अस्तित्व नहीं रह गया है ।
सर्वत्र खार्थका नग्न-ताण्डव हो रहा है | इस अवसरपर
गीताप्रेस” द्वारा 'सदाचार-अड्डशका प्रकाशन अत्यन्त
सामयिक एवं समुचित है |
सदाचार शब्दका शास््रसम्मत अर्थ--अशाल्रोंके
अनुसार सज्जनोंके आचारका नाम सदाचार है---'सर्तां
सज्जनानामाचारः--सदाचारः |! अथवा सत् परमात्माके
प्राप्यय शाखसम्मत सजनोके आचरणका नाम
सदाचार है। दुसरे शब्दोमें शात्नसम्मत जिन आचरणोके
करनेपर आत्मा, मन-वाणी तथा शरीरको सुसंस्क्ृत कर सद-
चित्-आनन्दरूप परमात्माकी उपलब्धिकी ओर उन्मुख
कर असत्-रूप जगतके रागद्रेप-कलह. आदि
आसुरभावोंसे विमुक्त होकर प्राणी अभ्युदय तथा
दान्तिमय बातावरणका निर्माण करता है---कर सकता
है, वे कम, आचरण या व्यापार 'सदाचारः हैं।
विद्ेपपगरहिता अजनुतिष्ठन्ति य॑ मुने।
विद्धांसस्त॑ सदाचारं धर्ममू्ल विद्ुदुधाः ॥
( स्कन्दपुराण, कागीखं० अ० ३५; इलोक २५)
शरजन्मा स्कनदर अगस्यजीसे कदते हैं--भमुने !
अम्ृया-राग-देपादि दोपोंसे विमुक्त संत एवं विद्ृश्नन
जिन आचरणोका अनुष्टान करते हैं, पण्डितलोग उन
आचरणोंको बर्ममछ एवं सदाचार मानते या समझते हैं ।!
सदाचारके पालन न करनेसे मानत्र निन्दनीय, रोगी,
दुःखी और अल्पायु हो जाता है-..-
डुराचाररतों छोके गर्ईणीयः पुमान भवत्।
व्याधिभिश्वाभिमूयेत सदाल्पायुः सुद॒ुःखभाक ॥
( स्कन्दपुराण काशीख० ३५ | २८ )
इस विपयपर पाश्चात्त्य विद्वान् जे० मिल्ट सेवने
नामके विचार भी मननीय हैं | वे कहते हैं-
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मानव सौ वर्ष या उससे अधिक आयुतक जीबित
रह सकता है, यह कोई काल्पनिक वर्णन नहीं
है | शरीर-विज्ञान तथा प्राकृतिक नियमानुसार मानव-
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