कथा कहानी का शास्त्र | KATHA-KAHANI KA SHASTRA

KATHA-KAHANI KA SHASTRA by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaगिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वार्ताओं के समूह भी भिन्न-भिन्न बन गए हैं; इसी प्रकार एक ही समाज के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की भिन्न-भिन्न रुचियों के कारण भी वार्ताओं के समूह भिन्न-भिन्न बन गए हैं। एक ही समाज में अनेक रंगी लोग होते हैं। एक ही समाज में आदिम युग के मनुष्यों जैसी बुद्धि, शक्ति एवं वृत्ति वाले मनुष्यों से लेकर उच्च मानवीय दशा जैसी बुद्धि, शक्ति एवं वृत्ति धारण करने वाले मनुष्यों तक के व्यक्ति हमें मिल जाते हैं। एक ही समाज में क्षुद्र वृत्ति वाले मनुष्य से लेकर उच्च वृत्ति तक का मनुष्य मिल जाता है। इसी से एक ही वार्ता की परत अथवा समूह में विविधता देखने में आती है। यह विविधता लोकरुचि का प्रतिबिम्ब है। इस विविधता में समाज का सम्पूर्ण जीवन विद्यमान है। इन तमाम कथाओं में से कौनसी ली जाएँ और कौनसी न ली जाएँ, यह निर्णय अत्यंत कोशल के साथ करना होगा। यहाँ हमें एक बात पर विचार करना है कि हमें बालकों को प्रथमतः शुद्ध एवं निर्दोष आनंद देने के लिए ही कहानियाँ कहनी हैं। निश्चय ही हमारा प्रधम उद्देश्य यही है, फिर भी यह बात हमारे ध्यान से कहीं निकल न जाए कि कहानियाँ कई तरह से बालकों के जीवन का निर्माण करती हैं। वे शुद्ध आनंद देती हैं इसीलिए उनमें बालक के जीवन को संस्कारित करने की शक्ति मौजूद रहती है। जो वस्तु सुन्दर है, मधुर है, प्रिय है, उसका हम पर प्रभाव होना स्वाभाविक है। अपने आप में सुन्दर कहानियाँ हम पर कई तरह का असर डालती हैं। इसीतिए निर्दोष आनंद देने वाला साधन किसी तरह नष्ट न हो जाए, इसका हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए | प्रत्येक वार्ता आनंद देती है, क्योंकि वार्ता का आनंद-विभाग कला का विषय है और जहाँ वार्ता का कला-विभाग यथार्थ होगा वहाँ बालक को आनंद आएगा ही। पर सभी कलापूर्ण कहानियाँ लाभदायक नहीं होतीं, यह हमारा अनुभव है। इसीलिए हमें वार्ताओं के चुनाव के झंझट में पड़ना होगा | इससे पहले कि हम बालकों की कथाओं के चयन हेतु नियम बनाएँ, हमें उनकी वृत्ति और उनकी दुनिया को जान लेना चाहिए। अगर हम अपनी दृष्टि से बाल-जीवन के व्यवहार का निर्माण करेंगे तो थोड़े ही समय में हम बालकों का नुकसान कर बैठेगे। बालक सम्पूर्ण मनुष्य है, यह बात सही है, फिर भी सम्पूर्णता बीज रूप में है। इसीलिए वृक्ष के लिए जिस आबोहवा और खाद की जरूरत है वह आबोहवा और खाद बीज के लिए सदैव आरोग्यप्रद नहीं होती। बीज से लेकर 28 कथा-कहानी का शास्त्र सम्पूर्ण वृक्ष बनने तक की विकास-क्रिया का समय बहुत लम्बा है और उसमें अनेक श्रेणियाँ है। प्रत्येक श्रेणी पर वृक्ष की ग्राह्म-शक्ति और जरूरत को ध्यान में रखकर उसकी देखभाल करनी पड़ती है। कथाओं के चुनाव की दृध्टि से विचार करें तो बाल्यावस्था की कथाएँ, कुमारावस्था की कथाएँ, युवावस्था की कथाएँ, प्रौद्ञवस्था की कथाएँ तथा वृद्धावस्था की कथाएँ--और महिला वर्ग की पसंदीदा कथाएँ तथा पुरुष वर्ग को अच्छी लगने वाली कथाएँ--इन सब में हमें अंतर समझना चाहिए और उस अंतर को ध्यान में रखकर ही बालकों को कहने योग्य कहानियों का चुनाव करना चाहिए। वार्ताओं के चयन के समय तीसरी दृष्टि यह रखनी चाहिए कि बालक समाज के वाल्यकाल का प्रतिनिधि है। आदिम भनुष्य के विकास की क्रिया वाली दशा के साथ बालक के विकास की क्रिया वाली दशा का गहरा साम्य है। फिर वर्तमान संस्कृत समाज का एक अंग बनने के लिए हमारा समाज जिस आदिम समाज से बाहर निकल चुका है, उस्त दशा से बालक को बाहर निकलना है। यह सही है कि बालक एक सम्पूर्ण मनुष्य होता है, फिर भी अभी वह विकास की प्राथमिक स्थिति में है, यह बात सदैव ध्यान में रखकर ही बालक के लिए कथाओं का चुनाव किया जाना चाहिए। प्राथमिक मानव कैसी-कैसी कहानियाँ पसंद करता था, इसकी हमें पूरी-पूरी कल्पना करनी होगी। शुरुआत में ऐसी ही कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखते हुए हमें यह निर्णय लेना होगा कि बालकों के लिए कैसी कहानियाँ चुनी जाएँ । ढेर सारी कहानियों में से सबसे पहले हमें अर्थ-विहीन छोटी-छोटी कविताएँ और फिर तुकबंदियों से भरपूर कहानियाँ लेनी चाहिए। बिना अर्थ वाली तुकबंदियाँ बाल जीवन में कैसा अद्भुत चमत्कार पैदा करती हैं, इसे तो वही जान सकता है जिसने बाल-जीवन और बाल-कहानी कहने का सीधा अनुभव हासिल किया है | यहाँ गुंजराती भाषा की कुछ तुकबंदियां दी जा रही हैं। हरेक भाषा में ऐसी ढेरों तुकबंदियाँ घर-घर में मित जाएँगी। सादा रे चांदा, घी गोछ मांडा, दही के दूधड़ी, माखण फूदड़ी, मारी बेनना मोढामां हबूक पोछी ।' कहानी का चुनाव 29




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