आकाश दर्शन | AKASH DARSHAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
37
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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राकेश पोपली - RAKSEH POPLI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)32 आकाश-दशन का आनंद
लकड़ी के लख्त में छठ करक उसमे सरकंडा खड़ा कर सकते हो। गत्ते को इस
प्रकार घुमाओं कि ग्खा क ख पूर्व-पश्चिम की दिशा में आ जाये और विंदु घ उत्तर
दिशा में (चित्र ग)।
दिन के वागह बज सरकंडे की परछाई रेखा ग घ पर पड़नी चाहिए। यदि
नहीं तो गत्ते को धुमा कर रेखा ग घ को ठीक परछाई के नीचे ले आओ। फिर
से जाँच लो कि मग्कड़ा विल्कुल सीधा ऊर्ध्वाधर खड़ा है | अब गत्ते को इसी स्थिति
में कोल टॉक कर स्थिर कर दो, या जमीन पर क, ख, घ के स्थानों पर निशान
लेगा दो, ताकि जव भी धूपघड़ी देखनी हो, इसे ठीक दिशा में रखा जा सके।
अब, वस, इतना ही करना रह गया है कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक हर
घंटे पर( 7 बजे, 8 वजे, ....) आकर परछाई के सिर पर निशान लगा दो और
समय लिख दो। धूपघधड़ी तैयार है (चित्र ग )।
विशेष : 1. गत में या वादल वाले दिन में धूपघड़ी काम नहीं करेगी |
2. मौसम बदलने पर धूपघड़ी के समय में भी कुछ मिनट का अंतर आ
मकता है।
3. यदि तुम्हारा म्थान कर्क रेखा के दक्षिण में है, अर्थात अक्षांश 23
५ अंश से कम है, तो तुम्हें रेखा क॑ ख गत्ते के मध्य में खींचनी होगी।
वर्ष के कुछ भागों में सरकंडे की परछाई क ख के दक्षिण में भी पड़ेगी ।
मं भेद भें
4. चंद्रमा की कलाओं को देखना
सामग्री : कागज़, पेसिल,
घड़ी, देशी तिथि वाला कैलेंडर । (ही.
चंद्रमा हर रात को एक जैसा पूर्णिमा
नहीं दीखता, बल्कि अपनी आकृति
बदलता रहता है | इन अलग-अलग
आकृतियों को 'कलाएँ([[ कहते हैं | तृतीया
चंद्रमा की कलाओं पर आधारित
“देशी तारीख को तिथि कहते हैं।
अमावस्या के अगले दिन से पूर्णिमा
तक शुक्ल पक्ष की प्रथमा (1),
| घष्टी
द्वितीया (2), ............... पंचदशी कण्ज
(15) तक तिथियाँ रहती हैं और
उसके बाद फिर अमावस्या तक
कृष्ण पक्ष की 1 से 15 तक तिथियाँ
होती हैं।
यह प्रकल्प एक मास का है |
इसे साफ मौसम में शुक्ल पक्ष की
द्वितीया (दूज) या तृतीया (तीज) को
शुरू करना चाहिए, क्योंकि पहली
एक-दो रातों में चाँद आसानी से
दिखाई नहीं देता |
क. रातमें सूर्यास्त के एक-दो घंटे
बाद का कोई समय निश्चित
कर लो, जैसे आठ बजे
(गर्मियों में) या सात बजे
(सर्दियों में)। प्रतिदिन उसी
दादशी
जअभावस्था
चित्र 16: चंद्रमा की कलाएँ
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