हिंदी चेतना ,अंक -40 | HINDI CHETNA - MAGAZINE - ISSUE 40

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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___.....[7[7[7[7[7[.॒[.-.[7[]_[_._[]---_॒[.-.-.-.-.- नरेन्द्र कोहली विशेषांक : अक्टूबर 2008 _ हि नरेन्द्र कोहली: लेखक का पूर्ण लेखन ही उसका संदेश है। न अलग से कहने को क्या है। यदि इतना लिखने के पश्चात्‌ भी ८ क्ठाश ) ता संदेश अलग से देना पड़े, तो इसका अर्थ हुआ कि मैं अपनी तोड़ी, काश तोड़ी व्ही या रचनाओं में स्वयं को अभिव्यक्त नहीं कर पाया हूं। श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी, सरी-बैंकुअर चटपट सवाल झटपट जवाब द अभिनव:आपकी आने वाली अगली पुस्तक कौन सी है? नरेन्द्र कोहली: तोड़ो कारा तोड़ो का छठा खंड। 'तोड़ो, कारा तोडो' हिन्दी के प्रसिद्ध कथा शिल्पी श्री नरेन्द्र कोहली का बहुचर्नित उपन्यास है जिसमें विख्यात भारतीय दार्शनिक एवं आध्यात्मिक युग पुरुष स्वामी विवेकानंद की जीवन कथा है। 10५ स्वामी बनने के पूर्व उनका नाम नरेन्द्र दत्त था। उपन्यास की सम्पूर्ण कथा नरेन्द्र के जन्म से लेकर अभिनव :आपका सबसे प्रिय भोजन क्‍या है? नरेन्द्र कोहली: कभी सोचा नहीं। अभिनव: आपकी सबसे प्रिय फ़िल्म कौन सी है? उनके ठाकुर जी (श्री रामक॒ृष्ण परमहंस) के पूर्ण समर्पण की नरेन्द्र कोहली: भगवान्‌ जानें। कथा है। नरेन्द्र कहते हैं उनके इस प्रकार के विधास और प्रेम ने ही मुझे जन्म भर के लिय बाँच लिया है।' अभिनव : आपके प्रिय लेखक और कवि कौन हैं? नरेन्द्र एक ऐतिहासिक पात्र हैं इसलिये उपन्यासकार कोहली उनके चरित्र की सत्यता बनाये रखते हैं। सारी घटनायें लगभग उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती हैं। यह उपन्या चरित्र प्रधान है। कोहली जी ने उसे रोचक बनाने के लिये काल्पनिक पात्रों तथा प्रसंगों का सावचानी पूर्वक चयन किया है और उसमें संवेदनाओं के गहरे रंग भरे हैं नरेन्द्र कोहली: जयशंकर प्रसाद, निराला, प्रेमचंद, यशपाल, अमृतलाल नागर, हजारी प्रसाद द्विवेदी, फणीश्वरनाथ रेणु, लियो ताल्स्ताय तथा और भी बहुत सारे। अभिनव:आपको सबसे अच्छा शहर कौन सा लगता है? फ्त्नस्तम्झ्प उाज्याय आशिक एपावशातती तथा स्याकाक नरेन्द्र कोहली: मैंने अभी कोई भी नगर खरीदने का मन नहीं बन सका है। बनाया है। नरेन के जन्म की सूचना बुआ-पीशी मां देती हैं तभी से उसके वकील पिता विश्वनाथ बुआ से बात करते हुए सोचने लगते हैं कि कहीं चार पुत्रियों के बाद उसके पिता जो सन्‍्यासी हो गये थे लौटकर बेटे के रूप में तो नहीं आ गये। माता भुवनेश्वरी नरेन में श्रीकृष्ण की बाललीलाओं की छाया देखती हैं। नरेन भागता है माता उसे पकड़ने का प्रयास करती, उसे फुसलाती हैं। नरेन कहता है नहीं चाहिए प्यार, यह तो पकड़ने का बहाना है। उनका दिल घक से रह गया, ये तो सनन्‍्यासी की भाषा बोलता है'। इस प्रकार आगामी घटना के प्रति पाठक की जिज्ञासा कोहली जी बनाये रखते हैं। कथा का प्रवाह घटनाओं के गुथे रहने से बना रहता है। बचपन की बालक्रीड़ाओं में नरेन का असाधारण व्यक्तित्व छिपता नहीं। अपनी मेघा शक्ति तथा तार्किक दृष्टिकोण का सदुपयोग वे सामाजिक व्यवस्था और घार्मिक मान्याताएं को समझने-परखने में लगाते हैं। इस संदर्भ में होनहार बिरवान के होत चीकने पात्‌' वाली कहावत सत्य लगती है। इस उपन्यास में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जिनमें नरेत्र (बिलेह) की दार्शनिकता तथा आधष्यात्मिक- ता से परिचय मिलता है : एक दिन नरेन ने अपनी कीमती और प्यारी घोती सनन्‍्यासी को दे दी। माँ ने पूछा 'किसे दे दी सन्‍्यासी को दे दी, उसका उत्तर था। दान तो मूल्यवान वस्तु का ही होता है। कबाड़ का त्याग तो त्याग नहीं, स्वार्थ है।' माँ भुवनेश्वरी के मन में नचिकेता की कथा घूम गई। नरेन कक्षा में शिक्षक द्वारा पहले अंग्रेजी पढ़ाने का विरोधष करता है। नरेन का तर्क था कि पहले अपनी भाषा की नींव ठीक करें फिर विदेशी। भूगोल की कक्षा में शिक्षक डॉ. कोहली अपनी पत्नी डॉ. मध्ुएमा जी के साथ शान्ति व्ठे कुछ पल बिताते हुये- 14




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