हिंदी चेतना ,अंक -44- अक्टूबर 2009 | - MAGAZINE - ISSUE 44 - OCTOBER 2009

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अक्टूबए 26७७९ गरीबों ने हाथ तापने को फैला दिये यूं तो सजदे में हरदम हाथ उठें नीना के पैर ढीले कर पसरा दिये तुम बिन मुकम्मल उसकी इबादात नहीं होती मस्ती भरी अघनंगी अंगड़ाई ली अः्जः तः् ः जे मन जे जज जज ते जज जज जः् जज जः् जन्‍् ते जे जे भर भर जः जे न: २ ठिठुरती रात अब बीत जायेगी पानी पानी है कछ्ष्ठा क्ट्मार कवि है रात भर जलेगा ठष्ण कुमाए ( यू; के.) भगवान है मेहरबान न कल फिर कोई कवि मरेगा । जग के साकी मन ने आज सखा माना है आती - जाती हर सांसों ने क्या - क्‍या अंकित ? पहचाना है यह केवल संयोग नहीं है ये जद और और ज< जद जद और और ज॥ जद जद और और ज5 और जे और जर ज३ और भर और शगशज़ल विज्ञान ब्रत ( भाएत) जुगनू ही दीवाने निकले पूर्व जनम का यह लेखा है अँधियारा झुठलाने निकले जो भविष्य का घटक बनेगा दिव्य दृष्टि ने यह देखा है। ऊँचे लोग सयाने निकले ऊहापोह में जीवन फंसता महलों में तहख़ाने निकले फिर जा वह दलदल में घंसता आ कर साकी डोर सम्भालो वो तो सबकी ही ज़द में था ओऔ भविष्य की ओर बचा लो किसके ठीक निशाने निकले जग के ओ पानी वाले क्‍यों यह जीवन आहों का अंदाज़ नया था पानी -- पानी हैं । लेकिन जरख्य पुराने हों 4 5 8 मा 8 5 2 पायल की ह्ञनक्ाए बसा ढो नऐन्द्र श्रोवए ( यू कहे.) तुम हँस -हँस पिया दीप जला दो, जिनको पकड़ा हाथ समझकर वो केवल दस्ताने निकले भ औ<ई और औ६ ज६ ज८ जद अध अंद औद अर जप ६८ |६ ज६ ज८ ज८ जद अंद अध अर और ६ |६ 3६ ज८ हि राह अँधेरी आज किसी की, मुलाकात न होती नीरस गीतों के आँगन में, नीना पाल ( यू. के.) पायल की झनकार बसा दो ! है उनको शिकायत कि मुलाकात नहीं होती बन बिरहन सावन की बदली, गुफ़्तगू करके भी कभी बात नहीं होती । - छम -छम नीर बहाती पगली, दूर है मंज़िल आज किसी की, आलम क्‍यों पूछते हो बिन बुलाई बरखा का तुम साथी बन राह दिखा दो ! गर्जने वालों से कभी बरसात नहीं होती हर पग पर उठते हैं तूफाँ, ना था यकीं उनको भी उल्फत है किसी से हर पग पर पावस की बदली, हर एक बात उनकी ख़राफात नहीं होती शशि से लेकर ज्योति स्वयं तुम, बुझते दीपक आज जला दो! हर वक्‍त मय्यसर जिसे निगाह - ऐ -नाज़ से मय से उसकी गरज़ कभी नशात नहीं होती शलभ बने दीपक के साथी, लेकिन सूनी माँग किसी की, चमन भरा गुलों से मगर सबकी नसरीं जुदा तुम ननकर सिंदूर प्रीत का, बदलती रुतों से छनकी हस्लात नहीं होती माँग किसी की आज सजा दो ! इजहार -ऐ - मोहब्बत तो नज़र आये आँखों में अल्फाज़ों से एऐहसास- ऐ-जजबात नहीं होती - 14 -




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