भारत में अंग्रेजी की समस्या | BHARAT MEIN ANGREZI KI SAMASYA

BHARAT MEIN ANGREZI KI SAMASYA by आर० के० अग्निहोत्री - R. K. AGNIHOTRIए० एल० खन्ना - A. L. KHANNAपुस्तक समूह - Pustak Samuhबरुण कुमार मिश्र - BARUN KUMAR MISHRA

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बरुण कुमार मिश्र - BARUN KUMAR MISHRA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 भारत में अँग्रेज़ी की समस्या भाषाओं को व्यापक पैमाने पर समझा जाता है क्‍योंकि मानक भाषाएँ तो सदैव एक छोटे-से क्षेत्र के सम्भ्रान्त तबके से सम्बद्ध रहती हैं। इसी तरह यह मानना भी गलत होगा कि भाषाएँ किसी प्रकार से सामाजिक या क्षेत्रीय विभेद नहीं दर्शातीं, क्योंकि यदि यह सच होता तो भाषाएँ कभी नहीं बदलतीं। अतः भाषा और बोली के बीच भेद करने का कोई भाषा शास्त्रीय आधार नहीं है। यह एक गहरा सामाजिक रूढ़ विचार है जिसका आधार समाज के सत्ता सम्बन्धों में है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि समाज के कमज़ोर वर्गों, जैसे किसानों, मज़दूरों, आदिवासियों तथा झुग्गीवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा पर 'बोली' अथवा “अमानक भाषा” जैसे लेबल चस्पाँ किए जाते हैं। यह हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है कि हम उन ताकतवर शक्तियों के प्रति सजग रहें जो बोलचाल की किसी विशिष्ट किस्म को “मानक' के रूप में स्थापित करती हैं। यह मात्र सम्भ्रान्त लोगों के लिए ही सम्भव है कि वे पत्र-पत्रिकाओं, शब्दकोशों, सन्दर्भ ग्रन्थों इत्यादि का प्रकाशन करके तथा हर स्तर पर उसे शिक्षा का माध्यम बनाकर अपनी विशिष्ट बोली को संहिताबद्ध व प्रतिष्ठित बना सकते हैं। ब्रिटिश अकादमी के अध्यक्ष तथा उस ज़माने के प्रभावशाली व्याकरणविद रैंडोल्फ क्वर्क जैसी हस्ती ने कहा थाः आम मूल-झँग्रेज़ी भाषियों ने मानक अँग्रेज़ी के प्रति कभी अपना आदर नहीं त्यागा है, और यह विदेशों में भी समझ लेना आवश्यक है कि मानक अँग्रेज़ी जीवित व स्वस्थ है, इसका अस्तित्व व इसका मूल्य स्पष्ट रूप से माने जाते हैं। यह बात विदेशी राजधानियों में शिक्षा मंत्रालयों व मीडिया अधिकारियों को समझ लेनी चाहिए; तथा यू.के. और यू .एस.ए. के उन लोगों को भी समझ लेनी चाहिए जो विदेशों में अँग्रेज़ी पढ़ाते हैं (क्वर्क 1989: 18)। अतः हमें “'भाषाः एवं “बोलचाल समुदाय” की ऐसी संकल्पनाओं की आवश्यकता है जो बहुभाषिकता, विविधता, बहुसंस्कृतिवाद तथा, सबसे अधिक, “मानक भाषा” व समाज में सत्ता व हैसियत के अर्जन के बीच अन्तर्सम्बन्ध को समेट सकें। हालाँकि भारत में अँग्रेज़ी की भूमिका, हैसियत व कार्य को आम आदमी तथा विद्वानों, दोनों ने बार-बार बढ़ा-चढ़ाकर बयान किया है, मगर बहुभाषी भारतीय लोकाचार में इसकी स्थिति की सावधानीपूर्वक छानबीन नहीं की गई है। हम सामाजिक व शैक्षिक दायरों में अँग्रेज़ी के इर्द-गिर्द फैलती रहस्य की परतों व उसकी बढ़ती ईश्वरीय शक्ति को देखते हैं - यह मूलतः किसी




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