शोध दिशा, सितम्बर 2014- मार्च 2015 | LAGHU KATHA, SEPT 2014- MAR 2015
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
803 KB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्यामसुंदर “दीप्ति'
मां की जरूरत
“कर लो पता अपने काम का, साथ ही उन्हें
चेयरमैन बनने की बधाई ही दे आओ इसी बहाने ', पत्नी
ने आग्रह किया तो भारती चला गया, वरना वह तो कह
देता था, 'देख, गर काम होना होगा तो सरदूल सिंह खुद
ही सूचित कर देगा। हर पाँच-चार दिन के बाद मुलाकात
हो ही जाती है।'
तबादलों की राजनीति वह समझता था। केसे मंत्री
ने विभाग सँभालते ही सबसे पहले तबादलों का ही काम
किया। बदली के आर्डर हाथ में पकड़ते ही भारती ने अपनी
हाजरी रिपोर्ट दी और योजना बनाने लगा कि क्या करे?
कहाँ रहे। बच्चों को साथ ले जाए या रोज़ाना आए- जाए।
बच्चों की पढ़ाई के मद्देनजर आखिरी निर्णय यही हुआ कि
अभी शिफ्ट नहीं करते और “कपल केस' के आधार पर
एक अर्जी डाल देते हैं और तो भारती के वश में कुछ था
नहीं। फिर पत्नी के कहने पर एक अर्जी राजनीतिक साख
वाले पड़ोसी, सरदूल सिंह को दे आया था।
सरदूल सिंह घर पर ही मिल गया और भारती
को गरमजोशी से मिला। भारती को भी अच्छा अच्छा
लगा। आराम से बेठ, चाय मँगवाकर सरदूल कहने लगा,
“छोटे भाई! वह अर्जी मैंने तो उस समय पढी नहीं, वह
अर्जी तूने अपनी तरफ से क्यों लिखी, “माताजी की तरफ
से लिखनी थी। ऐसे कर, नई अर्जी लिख। माताजी की
तरफ से लिख कि मैं एक बूढ़ी
औरत हूँ, अक्सर बीमार रहती हूँ।
मेरी बहू भी नौकरी करती है,
बच्चे छोटे हैं, देर-सवेर दवाई
की ज़रूरत पड़ती है, मेरे बेटे के ः
पास रहने से में..। कुछ इस तरह से बात बना। बाकी तू
समझदार है। मैंने परसों फिर जाना है, मंत्री से भी
मुलाकात होगी।' उसने आत्मीयता दिखाते हुए कहा।
भारती ने सिर हिलाया, हाथ मिलाया और घर
की तरफ हो गया। माँ की तरफ से अर्जी लिखी जाए। माँ
को मेरी ज़रूरत है...माँ बीमार रहती है, कमाल! बताओ
अच्छी-भली माँ को यूँ ही बीमार कर दूँ। सुबह उठ
बच्चों को स्कूल का नाश्ता बनाकर देती है। हम दोनों को
तो ड्यूटी पर जाने की अफरा-तफरी पड़ी होती है। दोपहर
को आने पर रोटी पकी हुई मिलती है। मैं तो कई बार कह
चुका हूँ कि माँ बर्तन साफ करने के लिए नौकरानी रख
लेते हैं, माँ ने वह नहीं रखने दी। कहने लगी, मैं सारा दिन
बेकार क्या करती हूँ। ....कहता है लिख दे, बेटे का घर में
रहना ज़रूरी है। मेरी बीमारी के कारण, मुझे इसकी ज़रूरत
है। पूछे कोई इससे, माँ की हमें ज़रूरत है कि....। नहीं नहीं,
माँ की तरफ से नहीं लिखी जा सकती अर्जी।'
97, गुरुनानक एवेन्यू, मजीठा रोड
अमृतसर 143004
उर्मिलकुमार थपलियाल
जेट गीटिंग
हमेशा की तरह की गेटमीटिंग थी। बेठे हुए
मजदूरों के चेहरे पर एक औपचारिकता थी। शिथिल,
क्लांत और बासी-तिबासी। आज बाहर से यूनियन के
एक जुझारू नेता आने वाले थे। वे आए। चेहरे पर ही
क्रांति की चमक थी। मजदूरों ने तालियों से उनका
स्वागत किया। मजदूरों की दशा देखकर वे पहले द्रवित
और फिर क्रोध में हो गए। लम्बा-चौड़ा भाज़ण न देकर
वे सीधे प्वाइंट पर आ गए। उन्होंने चीखकर पूछा-क्या
तुम्हारे घर में राशन है?
सभी मजदूर मायूसी में बोले-नहीं।
नेता- रहने को घर हे?
सब-नहीं।
नेता-पहनने को कपड़ा है?
सब-नहीं।
नेता- कुछ पैसा -वैसा हे?
सब-नहीं
नेता-तुम्हारे पास माचिस हे?
सब- हाँ, है।
नेता-तो जला क्यूँ नहीं डालते इस व्यवस्था
को। अभी इसी वकक्त।
सब-माचिस में तीलियाँ नहीं हैं।
ए 1075/ 3, इंदिरानगर, लखनऊ 226016
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