ठाकुर का आसन | THAKUR KA AASAN

Book Image : ठाकुर का आसन  - THAKUR KA AASAN

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विजयदान देथा - Vijaydan Detha

No Information available about विजयदान देथा - Vijaydan Detha

Add Infomation AboutVijaydan Detha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बनिए का चाकर - विजय दान देथा कोल्हू का बैल और बनिए का चाकर हर वक्‍त फिरते हुए ही शोभा देते हैं। किसी एक सुहानी वर्षा की बात है कि बादलों की मधुर-मधुर गरज के साथ झमाझम पानी बरस रहा था। चौक वाली बरसाली में सेठ जी के पास ही उनका नौकर मौजूद था। पानी बिना रुके बह रहा है और यह ढूँठ की तरह खड़ा है, कैसे बर्दाश्त होता! चौक में पत्थर की पनसेरी पड़ी थी। सेठ जी इसी चिंता में खोए थे कि नौकर को कया काम बताया जाए। यह तो मालिक की तरह ही आराम कर रहा है! पनसेरी पर नजर पड़ते ही तत्काल उपाय सूझा, चाकर की तरफ मुँह करके हुक्म सुनाया, खड़ा- खड़ा देख क्या रहा है, यह पनसेरी अन्दर ले आ, बेचारी पानी में भीग रही है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now