जंगली बूटी | JUNGLEE BOOETE
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
11
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
No Information available about अमृता प्रीतम - Amrita Pritam
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नन्हे क्या पढ़ती हो, बीबीजी?” एक दिन अंगूरी जब आई मैं नीम के पेड़ों 5
जे रे ६ के नीचे बैठकर एक किताब पढ़ रही थी।
| “तुम पढ़ोगी?
“मेरे को पढ़ना नहीं आता।”
“सीख लो।”
“ना।”
क्यों? 8
“ओरतो को पाप लगता है पढ़ने से। चर
“औरतों को पाप लगता है, मर्द को नहीं लगता?”
“ना, मर्द को नहीं लगता?
“यह तुम्हें किसने कहा है?”
“मैं जानती हैं।
. “फिर मैं तो पढ़ती हूँ। मुझे पाप लगेगा।” 25
“सहर की औरत को पाप नहीं लगता, गाँव की औरत को पाप लगता 2»
खनन
0):
म 8 है।
(६| मैं भी हँस पड़ी और अंगूरी भी। अंगूरी ने जो कुछ सीखा-सुना हुआ था,
“61 उसमे उसे कोई शंका नहीं थी, इसलिए मैंने उससे कुछ न कहा। वह अगर
हर ५ | हँसती-खेलती अपनी
जेन्दगी के दायरे में सुखी रह सकती थी, तो उसके |;
लिए यही ठीक था। वैसे मैं अंगूरी के मुंह की ओर ध्यान लगाकर देखती 9),
४६ | | रही। गहरे सॉवले रंग में उसके बदन का मांस गुँथा हुआ था। और मैंने ।#
!8६| इस अंगूरी का प्रभाती भी देखा हुआ था, ठिगने कद का, ढलके हुए मुँह 2
इक का, कसोरे जैसा। और फिर अंगूरी के रूप की ओर मुझे उसके
मर्द के बारे में एक अजीब तुलना सूझी कि प्रभाती असल में आटे की इस
*1। घनी गुँथी लोई को पकाकर खाने का हकदार नहीं-वह इस लोई को ढककर ।॥
६५| रखने वाला कठवत है।....इस तुलना से मुझे खुद ही हँसी आ गई। पर मैं |£
User Reviews
No Reviews | Add Yours...