आव्हान | AAHWAN - MAGAZINE IN HINDI - AUGUST 2014

AAHWAN - MAGAZINE IN HINDI - AUGUST 2014 by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विभिन्न लेखक - Various Authors

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
और ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसी द्वारा तैयार करके मैदान में उतारा गया है। अब यह बात और भी साफ हो चुकी है। गाजा संकट के बाद क्षेत्रीय पैमाने के अन्तरविरोधों में ऐसा बदलाव आया कि ईरान, सीरिया और हिजृबुल्लाह पर दबाव बनाकर उन्हें अलग-थलग करने तथा इराक के “बाल्कनाइजेशन' (टुकड़े-टुकड़े करने) और मध्यपूर्व की नयी डिजायन में हाथ लगाने के अपने मंसूबे को कुछ विराम देने और रणनीति में कुछ बदलाव लाने के लिए अमेरिका को मजबूर होना पड़ा। गाजा में इजरायल की हार केवल अमेरिकी साम्राज्यवाद ही नहीं, बल्कि मिस्त्र, जार्डन, सऊदी अरब, कृतर और यमन सहित खाड़ी देशों के सभी अमेरिकापरस्त शासकों के लिए एक भारी झटका सिद्ध हुई है। सभी अरब देशों की जनता गाजा के समर्थन में जब लाखों की तादाद में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही थी तो फिलिस्तीनी लक्ष्य के प्रति गृद्दी के लिए अपनी हुकूमतों के खिलाफ भी गहरी नफरत का इजहार कर रही थी। कृतर का शासक वर्ग इस समय सुन्‍नी इस्लामी देशों के कथित नेतृत्व के लिए सऊदी अरब के शासकों से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। अपने इसी उद्देश्य से, अरब जनता का समर्थन हासिल करने के लिए उसने गाजा की जनता और हमास का ज़्यादा मुखर समर्थन किया, लेकिन यह समर्थन वस्तुतः जुबानी जमाखूर्च से अधिक कुछ नहीं था। कमोबेश यही स्थिति तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एदोंगान की भी थी, जो अपनी क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर साम्राज्यवादियों द्वारा खींचे जाने वाले पश्चिम एशिया के नये नक्शे में अपनी प्रभावी दखल बनाना चाहते हैं। गाजा की जनता की कार्बानियों ने समूचे अरब क्षेत्र की जनता में साम्राज्यवाद-विरोधी भावनाओं और साम्राज्यवादपरस्त देशी पूँजीवादी सत्ताओं के विरुद्ध एकजुटता और भाईचारे की नयी लहर पैदा करने में अहम भूमिका निभायी है। गाजा युद्ध के समय ही पश्चिमी तट पर जायनवादियों के विरुद्ध आन्दोलनों-प्रदर्शनों की शुरुआत हो चुकी थी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पश्चिमी तट के इलाके में लगातार जन प्रतिरोधों की खबरें मिल रही हैं और इजरायल द्वारा अवैध बस्तियाँ बसाने के उद्देश्य से जमीन हड़पने की ताजा घटनाएँ इस आग में लगातार घी डालने का काम कर रही हैं। गाजा की घटनाओं के बाद पश्चिमी तट के क्षेत्र में समझौतापरस्त फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पी.एल.ओ.) और महमूद अब्बास की सरकार की साख में भारी गिरावट आयी है। युद्धविराम समझौते के बाद, गाजा में इतनी अधिक तबाही के लिए हमास को जिम्मेदार ठहराने वाले महमूद अब्बास के बयान ने उनकी अलोकप्रियता को और अधिक बढ़ाया है। इस तरह गाजा के संघर्ष ने इजरायल के साथ ही महमूद अब्बास को भी करारा झटका दिया है। आज यह महमूद अब्बास की मजबूरी है कि हमास की आलोचना करते हुए भी वह एकता सरकार बनाने की नयी पहल में भागीदार बने रहे। अन्यथा पश्चिमी तट के फिलिस्तीनी ही उनके खिलाफ सड॒कों पर उतर पडेंगे। यहाँ पर यह याद करना प्रासंगिक होगा कि जब पी. एल.ओ. ने समझौतापरस्ती का रास्ता नहीं अपनाया था, तब मिस्र के 'मुस्लिम ब्रदरहुड' से जुड़े धार्मिक कट्टरपन्थी संगठन « हमास' को पी.एल.ओ. के प्रतिद्वन्द्दी के रूप में उभारने में इजरायली शासकों और अमेरिकी साम्राज्यवादियों का भी परोक्ष समर्थन था। मैड़िड शान्ति सम्मेलन (1991) और ओस्लो समझौते (1993 ) के बाद पी.एल.ओ. के सेक्युलर, रेडिकल बुर्जुआ नेतृत्त और उसके सामाजिक जनवादी सहयोगियों ने संघर्ष के बजाय समझौते के जरिये जायनवादियों और उनके अमेरिकी सरपरस्तों से कुछ हासिल करने की कोशिशें शुरू कर दीं। जैसे-जैसे समझौते की यह रणनीति समझौतापरस्ती में बदलती गयी और साथ ही इसकी व्यर्थता भी उजागर होती चली गयी, वैसे-वैसे हमास का सामाजिक-समर्थन आधार विस्तारित होता चला गया। दरअसल पी.एल.ओ. के जुझारूपन खोते बुर्जुआ नेतृत्व से मोहभंग को शुरुआत तो 1987 के उस व्यापक जनउभार से ही हो चुकी थी, जिसे पहले 'इन्तिफादा' के नाम से जाना जाता है। पी.एल.ओ. द्वारा समझौतापरस्ती का रास्ता अपनाने के बाद अमेरिकी-इजरायली स्कीम में हमास को परोक्ष शह देने की न जृरूरत रह गयी थी, न ही गुंजाइश। इधर मुक्तिकामी जनता की आकांक्षाओं के दबाव तले हमास के चरित्र में भी बदलाव आया। हमास आज “अल कायदा' या आई.एस.आई.एस. जैसा या “मुस्लिम ब्रदरहुड' जैसा कट्टरपन्थी आतंकवादी संगठन नहीं है (ऐसे कुछ अन्य छोटे संगठन वहाँ हैं)। यह एक व्यापक जनान्दोलन है, जिसका सशस्त्र दस्ता भी है। यह मुक्त फिलिस्तीन में शरिया कानून लागू करने, स्त्रियों के लिए पर्दापोशी अनिवार्य करने जैसी या दुनिया के पैमाने पर जेहाद छेड़ने जेसी बातें नहीं करता। सच्चाई यह है कि फिलिस्तीन में यह सम्भव नहीं। फिलिस्तीनी जन पारम्परिक तौर पर अरब क्षेत्र के सबसे आधुनिक और शिक्षित लोग रहे हैं। हमास का आज सिर्फ इसलिए व्यापक समर्थन आधार है, क्योंकि वह जायनवादियों के विरुद्ध जुझारू ढंग से लड़ रहा है। जैसे ही उसकी यह भूमिका नहीं रहेगी, या वह जनता पर किसी किस्म की कट्टरपन्थी निरंकुश सत्ता थोपने का प्रयास करेगा वैसे ही कोई नया रैडिकल विकल्प हमास का स्थान ले लेगा। यह याद रखना होगा कि पी.एल. ओ. में शामिल जॉर्ज हबाश के नेतृत्व वाले वामपन्थी संगठन “पी.एफ.एल.पी. ' ने जब मुख्य घटक (राष्ट्रीय बुर्जुआ चरित्र वाले) (अल फृतह' के पिछलग्गू की भूमिका अपनाते हुए समझौते का मार्ग चुना और पी.एफ.एल.पी. से अलग हुए रैडिकल वाम धड़े भी जब अपनी यांत्रिक, संकीर्णतावादी और वाम दुस्साहसवादी गृलतियों के कारण कोई विकल्प नहीं बन सके, तो इन्हीं स्थितियों में हमास अपनी ताकृत और आधार बढ़ाने में सफल हुआ था। बहरहाल, फिलहाल गाजा पट्टी के साथ ही पश्चिमी तट के इलाके में भी हमास का आधार-विस्तार पी.एल.ओ. (पृष्ठ 22 पर जारी ) मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान * जुलाई-अगस्त 2014 * 14




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now