प्राथमिकशाला में भाषा-शिक्षा | PRATHMIK SHALA MEIN BHASHA SHIKSHAN

PRATHMIK SHALA MEIN BHASHA SHIKSHAN by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaगिजुभाई बढेका -GIJUBHAI BADHEKA

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समाप्त होने पर, या चालू खेल में भी, वह देख सकेगा कि कौनसी चिटिठ्याँ बालक बार-बार और दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं और किन चिदिठियों के पढ़ने में उन्हें मज़ा नहीं आता । चिट्ठी-बाचन द्वारा शिक्षक विद्यार्थियों को वाचन-शक्ति की योग्यता, भिन्न-भिन्न क्रिया-सम्बन्धी उनकी रुचि-अरुचि और इन पर से प्रकट होने वाली उनकी वृत्ति जान सकेगा । फरूत: वह शिक्षण में बालक की अधिक सहायता कर सकेगा । दो क्षरों के शब्दों से छेकर बीस-बीस क्षक्षर के शब्दों की चिटिठयाँ बनाई जा सकती हैं। बालक का शरीर, आसपास की परिस्थिति, उसका ज्ञान, शाला, धर, कुदरत, खुराक, पोशाक, गहने, आदि विषयों पर अनेकानेक चिट्ठियाँ छिखकर चिट्ठी-वाचन के विषय को विद्याल बाल-दुनिया का एक बाल-प्रिय विषय बनाया जा सकता है । विशेषत: आरम्भिक चिट्ठी-वाचन में मृक वाचन की आवश्यकता है। शिक्षक को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिये कि बारूक ज़ोर से न पढ़े; मन में पढ़े और समभकने का प्रय॑त्त करें। आरम्भ में मीखिक वाचत समभकर पढ़ने में विघ्नरूप होता है। मौखिक वाचन में शुद्ध उच्चारण का अभ्यास भी साथ ही साथ करता पड़ता है, जिससे समभने के काम के साथ ज़ोर से पढ़ने का एक दूसरा काम बढ़ जाता है, अतएव मौखिक वाचन बाद में शुरू करना चाहिये । .. अपनी क्रिया द्वारा बालक बता सकता है कि वह पढ़ें हुए को समभता है । एक विशेष परीक्षा के रूप में और मुख वाचन की तेयारी के लिए, जब बालक चिट्ठी पढ़कर क्रिया कर चुके, तो उससे वह चिट्ठी जोर से पढ़वानी चाहिये । पहले चिट्ठी को समभकर क्रिया कर लेने के कारण सम+ कर पढ़ने में, ज़ोर से पढ़ने में, सरलता होगी। क्योंकि इस समय बालक को समभने की चिन्ता नहीं करनी पड़ती, पर समभने का आनन्द ले-लेकर पढ़ना होता है । साथ ही, इस समय बालक वाचन पर उचित भार दे सकेगा और भाव- पूवंक पढ़ सकेगा। जिस भाव को वह एक बार क्रिया में उतार चुका है, उसे अब बाणी द्वारा व्यक्त करना कठिन नहीं होगा । द 28 प्राथमिक शाला में भाषा-शिक्षा चिट्ठी-वाचन की तुलना में पाठमाला की पुस्तकों का बाचन बालकों को नी रस लगेगा। शुरू की दो-तीन कक्षाओं में 'रोडरें पढ़ाने के बदले चिट्ठी-बाचन से काम लेना ही अच्छा है । नि:सन्देह चिटठी-बाचन के वर्षों में बालकों के सामने बाल-वाचन की सामग्री बाल-पुस्तकाछय के रूप में आ जाय, तो अवकाश के समय में बालक चिट्ठी-बाचन द्वारा उपाजित वाचन- शक्ति का उसमें उपयोग करेंगे ओर पुस्तक-वाचन के मार्ग पर चलने लगेंगे। चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते बालक अपने आप ही पढ़ने के शौक़ीन बनेंगे । फिर तो वे चिट्ठियों को छोड़कर सीधे पुस्तकों पर ही टूट पड़ेंगे और एक-दो नहीं, बल्कि असंख्य पुस्तकें पढ़ डालेंगे। इस प्रकार आज हमें पुस्तकें पढ़ाने, वस्तु - समभाने, भादि में जो परेशानी उठानी पड़ती है, वह बहुत कम हो जायगी । पर दशब्द-पोथो कुछ मूलाक्षर सीखने के बाद और चल .मूछाक्षर जान चुकने पर, बालक शब्द-बाचन की ओर प्रबृत्त होता है, और बोरहखड़ी का ज्ञान मिलने पर उसको शब्द-वाचन की श्षक्त में वद्धि होती है। साथ ही, उसका वाचन- प्रदेश विस्तृत बनता है। इस समय चाचा, दादा, बहन, घी, तेल, कौओा, चिड्िया, मोर, तोता, मना, हाथ, पर, आदि असंख्य शुर्द बासक के वाचम का विषय बन जाते हैं। ठीक इसी समय उसके अन्दर शब-कचन को जेबेर- दस्त भूख जागती है । बालक शब्दों की तलाश में द रहता. है. ६ “कल-कंथा- कह्दानी,' 'वानर', शिशु, कुमार, 'चमचम, व 'नवजीवन,” 'आज' आदि ध्ब्दों को घर में या पाठशाला में पड़ी हुई पुस्तकों या अखबारों में से पढ़ने को दोड़ता है । शहर में जाता है, तो दुकानों के साइन-बोर् पढ़ने को खड़ा रह जाता है। रास्ते में उड़ने वाले काग़ज़ के पुर्जों को उठाकर उनमें से भी : दो-चार छब्द पढ़ने की चेष्टा करता है। कभी-कभी बालक ऐसी पुस्तक भी पढ़ते पाथे जाते हैं, जो उनकी समभ में बिलकुल ही नहीं आ सकती | कारण




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