शहीद वीर नारायण सिंह | SHAHEED VEER NARAYAN SINGH

SHAHEED VEER NARAYAN SINGH by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaविभिन्न लेखक - Various Authors

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

विभिन्न लेखक - Various Authors

No Information available about विभिन्न लेखक - Various Authors

Add Infomation AboutVarious Authors

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१६) स्वर में बोल पड, लडबोन-लडबोन और ये आवाज इतनी तेज थी के सारे पहाडी इलाकों में तथा जंगलो में यही आवाज गुंजने लगी, तथा गांव गांव में पहुचने लगी । लोग सोनाखान पहुंचने लगे । कुरूपाट में नारायर्णासह का डरा था । कुरूपाट का पानी पीकर सरदारों ने शपथ ली कि अब हम साहकारों को सहन नहीं करेंगे । साहकारों की कोठो के अनाज म॑ आदिवासी किसानों की मेहनत का खून लगा हुआ है । लह पसोने की कमाई से पेदा हुआ अनाज महाजन की कोठी म॑ भरा हुआ रहेगा और हम भूख से तडफते रहेंगे, ये कभी नहीं हो सकता । नारायर्णासह की आवाज कुरूपाट में व आसपास के क्षेत्र में गुंजनें लगी । लडेंगे कि नहीं एक बार फिर नारायणसिह नें मुखिया साथियों से पूछा, सभी एक आवाज में चिल्ला उठ 'लडबोन” और फिर जोश में आकर नारायणसिह के नेतृत्व में लोग चल पड कसडोल की ओर । १८५६ का साल था नारायणसह अपने कबरे घोड पर सवार होकर नेतृत्व सम्हाला । लोगों के साथ नारायर्णासह कसडोल पहुचे, फिर एक धार कसडोल के ब्राम्हणों से कर्ज के रुप में अनाज मांगा । मिश्रा लोग अंगूठा दिखा दिया । नारायर्णासह से अब सहा नहीं गया । कोठी के धान _ को नारायर्णसह ने जब्त कर लिया और ग्रामवासियों के बीच जरुरत के आधार पर बांट दिया । सन्‌ १८५६ साल की यह घटना एक क्रांतिकारी घटना थी । आथ्थिक मांगों पर अनाज के लिये संघर्ष की जो मिसाल छत्तीसगढ की दूर एवं दुर्गम गांवों में नारायणसिह ने शुरू की उसकी मिसाल इतिहास में दुलंभ है । यह था जनता के लिए, जनता द्वारा संग्राम, जिसका नेतृत्व दिया था सोनाखान के आदिवासी नेता वोरनारायणसिह ने । नारायणसह ने अंप्रेज शासकों को बाद में खबर भी दे दी । व्यापारी मिश्र ने भी अपनी क्षति का पत्र डिप्टी कमिश्नर को भेजा । अंग्रेज कमिश्नर इलियट ने व्यापारी का भेजा हुआ शिकायत पत्र प्राप्त होते ही एक फौज की टुकडी के साथ नारायण सिंह के नाम से वारन्ट भेज दिया । परन्तु फौजी टुकडी धोखा देकर ही नारायणर्सह को रायपुर ले जाने में सफल हुई । १८५७ का




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now