गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas

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Goswami Tulsidas by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रै०. ) (१९) टोडर की मुत्यु-- सोरह से उनहत्तरों माघव सिततिथि धीर । पूरन झायू पाइ के टोडर तजे शरीर | (१३) तुलसीदास जी को सृत्यु--+ संवत्‌ सोरद से श्रसी श्रसी गड्ड के तौर । श्रावण क्यामा तोज शनि ठुलसी तज्यों शरीर | इनमें जहाँ जहाँ संबत्‌ मास पक्ष तिथि और वार दिया है गणना करने पर वे ठीक उतरते हैं । कुछ लोगों ने इस ग्रंथ को जाली बताया है आर यहाँ तक कह डाला है कि अयोध्या में यह जाल रचा गया है। एक वात ध्यान रखने योग्य है कि इस ग्रन्थ की सबसे पुरानी प्रतिलिपि संबत्‌ १८४८ की लिखी मौजा मरुव पोस्ट ओवारा जिला गया के पंडित रामाघारी के पास है। उनसे महात्मा बालकरास विनायक जी को श्राप्त हुई । वहाँ से प्र-प्र करके पंडित रामकिशोर शुक्त ने उसे छपवाया । अतएव यदि यह जाल है तो भी यह अयोध्या में नहीं रचा गया । (९) दूसरा श्रंथ नाभा जी का भक्तमाल हे । यह बात प्रसिद्ध है कि नाभा जी से और गोस्वामी जी से वृन्दावन में भेंट हुई थी । नाभा जी बेरागी थे और तुलसीदास जी स्मार्त वैष्णव खाने-पीने में संयम रखनेवाले । इसलिए पहले दोनों में न बनी पीछे से तुलसीदास जी के विनीत स्वभाव को देख नाभा जी बहुत प्रसन्न हुए । अतः उनका लिखना भी बहुत कुछ ठीक हो सकता था परन्तु उन्होंने चरित्र कुछ भी न लिखकर केवल गोस्वामी जी की प्रशंसा में यह छप्पय लिख दिया है-- कलि कछुटिल जीव निस्तार हित वाल्मीकि तुलसी भयो । चता काव्य निबंध करी सत कोटि रमायन | इक अच्छुर उच्च रे ब्रह्मदहृत्यादि परायन ||




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