वैज्ञानिक भौतिकवाद | Vaigyanik Bhautikvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेज्ञानिक भौतिकवाद 2 9जदिपिटि-ि किक प्रथम अध्याय कार्य-कारण ( हेतुवाद ) ट्वंद्वात्मक मौतिकवाद दर्शन नहीं बल्कि साइंसका श्रधिनायकत्व है इसीलिये वह जो भी शक्ति रखता है वह उसे साइंससे मिली है-- यह हम पहले कह चुके । किन्तु प्रचलित दर्शनवालों के मुकाबिलेमें इस इसे दर्शन--श्रौर उनसे कहीं बढ़-चढ़कर दर्शन --भी कह सकते हैं | दन्द्ात्मक भौतिकवाद श्रपनेकों प्रचलित तकंशास्तरकी कोटिमें रखने के लिये वैयार नहदीं है क्योंकि वदद दिमागी कसरतकों नहीं बल्कि प्रयोग ( भौतिक जगतमें प्राप्त वस्तु स्थिति )को परम प्रमाण मानता है यही उसके लिये सत्यकी स्वंश्रेष्ठ कसौटी है । तो भी जिस तरह प्रचलित दर्शनसे लोड लेनेके लिये उसे दशन बनकर दशनकी भाषामें जबाब देना पड़ता है उसी तरह तकके शख्रको कंठित करनेके लिये उसे तक॑- के जनक प्रयोग जैसे मदाशख्रवाले तकंको भी इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसी झवस्थामें वैशानिक भौतिकवाद को कार्यकारण ( देतु )-वादके बारेमें अपनी स्थितिको साफ कर देना जरूरी है । क काय-कारण या हेतु १ व्याख्या काय-कारण नियम क्या है ? इसे जाननेके लिये पहले कारणकों जानना जरूरी है । क्रारणका जो लक्षण श्रभी हम दे रहे हैं उसके बारेमें यह जान लेना जरूरी है प्रकृतिको यह. बिलकुल मंजूर नहीं है कि उसकी वास्तविकताकों परमार्थ तौरपर चित्रित या भाषित किया जाये ।--वस्तुता दार्शनिकों. झौर त़ार्किकोंके श्रथ॑में प्रमाथ लामक़ा जो




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