शरत - साहित्य ग्रामीण समाज | Sharat Sahitya Gramid Samaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.09 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमीण समाज श्प्ब कर रहे. हैं वैसा श्राद्ध करना तो माइ़में गया इस तरफ कमी किसीने ऑखसे- मी न देखा होगा। छुछ ठददरकर उन्होंने फिर कहा--भदइया मेरे बारेमें चहुतःसे साले आ आकर तुमसे तरह तरदकी बातें कहेंगे लेकिन यह निश्चय लानो कि यह धर्मदास-केवल धर्मका ही दास है और किसीका नहीं । इतना कहकर दृद्धने अपने सत्य माषणका सारा पौरुष आत्मसात् करते हुए गोविन्द गेंगूलीके हाथसे हुका छीन लिया गौर उसका एक कद खींचते ही फिर बहुत प्रबल वेगसे खेंसिना झुरू कर दिया । घमेंदासने छुछ चहुत अधिक अत्युक्ति नहीं की थी । च्दें श्रादकका लेसा आयोजन दो रहा था चैसा आज तक इस तरफ किसीने नहीं किया था । कल- कत्तेसे हलवाई आये थे और उन्होंने ऑगनमें एक तरफ अपनी भट्टी चढ़ा रखी थी | उसके चारों तरफ मदछेके बहुतसे ूडकों और ल्डकियोंकी मीड ूगी थी । कंगालोॉंको कपड़े बैठे जानेको थे | चेडी-मंडपके उस तरफ बरामदेमें अनुगत मैरव आचार्य थानॉमेंसि धोतियें फाड़ फाढकर श्र तह करके उनके ढेर लगा रहे थे। उधघर भी कई आदमी जमकर वैठे हुए थे और इस अपन्ययका हिसाब छगाकर रमेदाको उनकी इस मू्खतापर मन दी मन गालियें दे रहे थे । गरीब्र और दुखिया लोग खबर पाकर दूर दूरसे चले आ रहे थे | सभी तरदके आदमियोंसे सारा घर मरा हुआ था । कहीं कुछ लोग लड-झगड रहे थे तो कहीं झूठ-मूठ गोर ही मचा रहे थे। चारों ओर देखनेपर जब धर्मदासकों व्ययकी इस अधिकताका पता चला तत्र उनकी खँसी और भी च्यादा बढ़ राई । घर्मदासकी चातोंकें उत्तरमें रमेदा सरकुंचित होकर नहीं नहीं के सिवा कुछ और मी कहना चाहते थे लेकिन धर्मदासने दाथके इदारेसे उन्हें रोककर घडाघड और भी न चाने कितनी चातें कह डाली । लेकिन खैँसीके लोरके कारण उन बातोंका एक अल्र भी किसीकी समझमें न आया | गोविन्द गेगूली सबसे पहले आये थे | जो बातें घमेदासने कही थीं वे सच बातें कहनेका अवसर सबसे पहले गोविन्दको दी मिला था । लेकिन गोविन्दके मुँहसे उस समय वे बातें नहीं निकलीं इसलिए वे सोचने छगे कि मैंने ऐसी अच्छी चातें कदनेका अवसर व्यर्थ ही गवॉया और यह सोचकर उनके मनमें भारी क्षोभ उत्पन्न हो रहा था | लेकिन अब जो यह दूसरा अवसर मिला था उसे उन्होंने दाथसे नहीं जाने दिया । उन्होंने घ्मदासको सुनाते हुए जल्दी उत्दी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...