तुलसी - रत्नावली | Tulsi-ratnawali

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Tulsi-ratnawali by केदारनाथ गुप्त - Kedarnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तलसी-रलावली ७ बालकायड 0 माथना सो ०--जो सुमिरत सिधि होय गननायक करिवर बदन । करउ अनुग्रह सोइ वुद्धिगसि सुभगुन सदन ॥। मूक. होइ बाचाल पु चढइ गिरिवर गहन। जासु क्रपा से वयाल द्रव सकल कलि-मल दहन ॥। नील. सरोरुह॒ स्याम तरुन अरुन बारिज नयन | करउ सा मम उर धाम सदा छीर सागर सयन ॥ कुन्द॒इन्दु सम देह उमारमन करुना अयन | जाहि दीन पर नेह कर कृपा मदन मयन ॥| बद्उ गुरु पद कज कृपासिन्यु नररूप हरि। महामोह॒ तम पज जासु बचन रबि कर निकर ॥। बदर्डे गुरुपद पढुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥ अमिय मूरिमिय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥। सुककति सभु तन बिमल विभूती । मजुल मगल मोद प्रसूती ॥ जन मन मजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुनगन वसकरनी ॥ श्रीगुरु पद नख मनि गन जाती । सुमिरत दिव्य दृष्टि हियें हाती ॥। दलन मोह तम सो सप्रकासू । बड भाग उर आवइ जासू ॥ उधरहि बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के 1 सूमहिं रामचरित मनि मानिक । मुपुत प्रगट जहेँ जा जेहि खानिक |




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