नागार्जुन का रचना संसार | Nagarjun Ka Rachna Sansar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यक्तित्व की शोज पा कहा - यह लडका सरदत में अपाएुप इनोफे लिसता है। वैद्यनथ ने भा जी के आदेश पर. बपने सस्दत रनोर सुनाये । उन्होंने हो उसे मैयित्ती लेसन की और न मेवल प्रेरित किया बट मैथिली छदी था गुर भी सममाया। मा जी वा आशीप और प्रो्साइन पाबर वैद्यनाथ ने मैथिली रचनाएँ धुरू वर दी और अपना उपनाम मैंदेह रस लिया । उन्हीं दिनो भारती (हिन्दी) और चैदेही (मैधिली) नाम में दो हृस्तलिखित पश्चिवएं भी थुरू की गई जिसके सम्पादर वंदेह जी थे। पण्डित बहदेव मिश्र वे सरक्षण ने बैद्यनाय वो यदि राष्ट्रीय जीवनघारा और हिन्दी पद्य की जोर सोडा तो सीताराम जी की प्रेरणा उन्हें मैथिली माव्य की मधुरिमा और देमीपत की ओर ले गई। बैद्यनाथ मिश्र की पहली प्रकाशित रचता में थिली के पत्र मिथिला में तह्हरिया सराय से प्रकाशित हुई जिसे कवि ने महामहोपाध्याय प्डित मुरलीधर भा की मृहयु पर शोगगीत के रूप में सन्‌ 30 में लिखा था । छुट्टियों मे गाँव जाने पर भी छद था अम्पास चलता रहता थे यबविताएँ उधादाप्तर गाँव के ही लोगों पर होती । लिखने था बम वेद्यनाथ बरते और जिसपर लिखी जाती उसवी दीवाल पर चिपकाने का काम विसी और से लिया जाता । अक्सर ये ब्यग्य कविताएँ होती इसलिए गाँव में भीतर हो भीतर कमकनी फैल जाती भर ढूँढदया होती कि आखिर असली अपराधी कोन है । घोरे-धीरे यह वात सबके मानों तक पहुंच चुकी थी कि बेध्यनाथ मेंथिली और सस्इत में कविताएँ लिंपता है और गाँव मे जितने भी लड़के प्रथमा में इस बार बैठे है अमेता वही पास हुआ है। नो छात्रों मे से अकेते वेद्यनाथ उत्तीर्ण हुए क्योकि निरन्तर अम्पात करते रहने से वाक्य निर्माण की क्षमता का अच्छा विकास हो चला था । गाँव में उन दिनों एव पिस्यात सस्कूत प्डित बे--अनिरुद्ध मिश्र । नौकरी हो वे बनेली राज्य के विसी सस्कृत विद्यालय में करते थे किन्तु गमियों की छुट्टियो मे जब गाँव आत थे प्रतिभाशाली लड़कों को खोजंकर उन्हें ब्रह्म विद्या या पिंगल रचना मे आगे निकालने की इच्छा रखते थे । इस बार उन्होंने जब सुना कि अबेना बैद्यनाय ही नौ लड़कों मे पास हुआ है तो बहुत प्रसन्न हुए भर मिलने को बुलाया । गर्मी की दोपहर में आम के बाग मे बेठे बेंढे वे लंगडा और वस्वइया अगोरा बरते थे । उनके पास वही वाग मे लगातार तीन दिन वैद्यनाथ की पिंगल शिक्षा होती रही । उन्होंने इस कवि को वात्मीकि और वालिदास के छंदी की सूधषम टेकनीक का बोध भी कराया । आइवस्त होने पर परीक्षा के बतौर एक समस्या दी -- बालानाम रोत्दनम वलम्‌ 1 इसकी पूर्ति में चैद्यनाय को तीन दिन लग गए । किन्तु सफलता मिनी । पण्डित अनिशुद्ध मिश्र ने वैद्यनाथ की पीठ ठोही और जब उभी गाँव वालो के बीच बंढते अमर यह कहते सुने जाते कि उसको (वैद्यनाथ) सो हमने निकात दिया। नागाजुत आज भी इन तीनो वे प्रति इतज्ञता भाव रखते है और अनिरुद्ध मिश्र को सस्कृत र् पर्डित सीताराम भा को मैथिली काव्य गुरु के रूप मे स्मरण करते हैं। पण्डित उटदेव मिश्र का योगदान तो यताया ही जा चुका है। कि पण्डित अनिषरुद्ध मिश्र का आशीर्वाद और प० सीताराम करा का स्नहू प्राप्त कर वद्यनाथ घडत्ले से सस्कृत भौर मंथिली में कविताएँ लिखने लगें थे और समस्यापृत्तियों




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