रामायण के उपदेश | Ramayan Ke Updesh

Ramayan Ke Updesh by पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishraपाण्डेय बनारसीलाल - Pandey Banaaraseelal

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पं रामदहिन मिश्र - Pt. Ramdahin Mishra

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पाण्डेय बनारसीलाल - Pandey Banaaraseelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुरुमक्ति श् छेना चादिये। शीशा जितना दी विमल होगा उतना दो उसमें न सच्छ प्रतिविम्द-साफ परदादीं, पड़ेगा। इसलिये सदा सब छेगें। को अपने मनमुकुर को साफ फरने के लिये गुरुपद्रज् की जरूरत है। नदीं ते भश्ान की मंघेरी रात में सत्यासय का शान हिना बड़ा ही फठिन है । ः यह हमेशः खयाल रहे कि-- गुरु के वचन प्रतीति न जेही । सपनेहु सुगम न सुख सिधि तेही ॥ ( जिसको अपने गुरु के वचन में विश्वास नहीं है उसे सपने में थी सुख भौर सिद्धि नहीं मिलती । )




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