कवि सम्राट कालिदास | Kavi Samrat Kalidas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
281.38 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. कैलाशनाथ भटनागर - Dr. Kailashnath Bhatanagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मालविकाग्निमित्र श्
राजा ने योगिनी से पूछा--इन दोनों का निणय कैसे किया
जाय
योगिनी--कोई किसी कला में स्वयं निपुण होता है, और
कोई दूसरे को उसकी शिक्षा देने में - विशेष चतुर होता है ।
वास्तव में श्रे छ गुरु वही है जिसमें ये दोनों गुण विद्यमान हों ।
गौतम को तो इस विचार का समथन करना ही था,
इसलिए वह तुरंत वोला--सुना; उपदेश देखकर लिणय होगा ।
हरदत्त ्औौर गणदास यह मान गये। धारिणी ने कहा--
यदि मुख शिप्या नास्योपदेश विगाड़ दे तो इसमें गुरु का
क्या दोप ?
राजा--महारानी.! यह गुरु का ही दोप समभा जाता है
योग्य को शिक्षा देना ही गुरु की मूखंता हैं ।
महारानी प्रारंभ से ही सब समभ गई थीं। वे गणदास
की शोर मुँह करके वोलीं--तुम्हारी शिष्या तो अभी थोड़े ही
समय से शिक्षा पा रही है । उसे बुलाना नाट्योपदेश का झपमान
करना है। परंतु गणदास न माना । उसने कहा--इसी लिए
तो मेरा हठ है।
झब महारानी ने सोचा कि मेरी चाल नहीं चल सकती |
उन्हें योगिनी पर क्रोध ाता था । वे योगिनी के विपय में मन
दी मन कहने लगीं कि यह मुझे जागती हुई को भी सोई हुई-सी
समभती है। गणदास अब बहुत दृठ करने लगा। विवश
होकर मद्दारानी को स्वीकृति देनी ही पढ़ी । दोनों के उपदेश देखे
जाने का निश्चय हुआ । उससे दोनों की छोटाई-वड़ाई विदित
दो जायगी ।
दोनों नाट्याचाय संगीतशाला में श्रबंध करने चले गये।
जाते समय उन्हें योगिनी ने ादेश दिया कि पात्रों को विरले
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