कवि सम्राट कालिदास | Kavi Samrat Kalidas

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Kavi Samrat Kalidas by डॉ. कैलाशनाथ भटनागर - Dr. Kailashnath Bhatanagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालविकाग्निमित्र श् राजा ने योगिनी से पूछा--इन दोनों का निणय कैसे किया जाय योगिनी--कोई किसी कला में स्वयं निपुण होता है, और कोई दूसरे को उसकी शिक्षा देने में - विशेष चतुर होता है । वास्तव में श्रे छ गुरु वही है जिसमें ये दोनों गुण विद्यमान हों । गौतम को तो इस विचार का समथन करना ही था, इसलिए वह तुरंत वोला--सुना; उपदेश देखकर लिणय होगा । हरदत्त ्औौर गणदास यह मान गये। धारिणी ने कहा-- यदि मुख शिप्या नास्योपदेश विगाड़ दे तो इसमें गुरु का क्या दोप ? राजा--महारानी.! यह गुरु का ही दोप समभा जाता है योग्य को शिक्षा देना ही गुरु की मूखंता हैं । महारानी प्रारंभ से ही सब समभ गई थीं। वे गणदास की शोर मुँह करके वोलीं--तुम्हारी शिष्या तो अभी थोड़े ही समय से शिक्षा पा रही है । उसे बुलाना नाट्योपदेश का झपमान करना है। परंतु गणदास न माना । उसने कहा--इसी लिए तो मेरा हठ है। झब महारानी ने सोचा कि मेरी चाल नहीं चल सकती | उन्हें योगिनी पर क्रोध ाता था । वे योगिनी के विपय में मन दी मन कहने लगीं कि यह मुझे जागती हुई को भी सोई हुई-सी समभती है। गणदास अब बहुत दृठ करने लगा। विवश होकर मद्दारानी को स्वीकृति देनी ही पढ़ी । दोनों के उपदेश देखे जाने का निश्चय हुआ । उससे दोनों की छोटाई-वड़ाई विदित दो जायगी । दोनों नाट्याचाय संगीतशाला में श्रबंध करने चले गये। जाते समय उन्हें योगिनी ने ादेश दिया कि पात्रों को विरले




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