भद्रबाहु संहिता | Bhadrabahu Sanhita
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.11 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना १३ पद का कंकण पहने हुए बाछिकारभोंके ताल देकर नचानेपर भी मन्दिर-मयूरोंने नाचना ढ दिया । १३ रातमें कुत्ते मुँह उठाकर रोने छगे । १४. रास्तों कोटवी--सुक्तकेशी नग्त खियाँ घूमती हुई दिखिलाई पढ़ी । १५. महछोके फर्शोमें घास निकल भाई 1 ः १६. योद्घाओकी सियोके सुखका जो प्रतिबिस्ब सधुपात्रमें पढ़ता था उसमें विधवाओ जैसी एक वेणी दिखाई पढने लगी । १७ भूमि कॉपने लगी । १८८ दूरोके शरीर पर रक्तकी वूँ दें दिखाई पढ़ी जेसे वधद्ण्ड प्राप्त व्यक्तिका शरीर छाठचन्दुनसे सजाया जाता है । १६. दिशाओमे चारो भोर उत्कापात होने ऊगा । २०. मयकर भंमकावातने प्रत्येक घरको भककोर डाला । बाणने १६ सहोत्पात ३ दुर्निमित्त और २० उपलिड्रोका वर्णन किया है । यह वर्णन सहिताशास्र- का विकसित विपय है । उपयुंक्त विवेचनसे यह स्पष्ट है कि संदिताशास््रके विषयोका विकास भथवंवेदसे भारम्भ होकर सूचकालमें विशेष रूपसे हुआ । ऐतिहासिक महाकाव्य अ्न्थों तथा अन्य सस्कृत साहित्यमें भी इस चिषयके अनेक उदाहरण उपलब्ध है। इस शाख्रमें सूर्यादि अहोकी चाल उनका स्वभाव चिकार प्रमाण वर्ण किरण ज्योति सस्थान उदय अस्त मा चक्र अतिवक्र अनवक्र नत्तत्रविभाग और कूर्मका सब देशोमें फछ अगस्त्यकी चाल सप्तपियोकी चाल नक्तश्रव्यूह अहश्डगाटक अहदयुद्ध अहसमागम परिवेष परिघ उल्का दिग्दाह भूकम्प गन्धवंनगर इन्द्रधलुप वास्तुविद्या अगविद्या वायसविद्या अन्तरचक्र भ्रूगचक्र भश्वचक्र प्रासादलक्षण प्रतिमालक्षण प्रतिमाप्रतिष्टा घृतऊक्षण कम्नऊकक्षण खड्डछक्तण पट्ट- लक्षण कुपकुटलक्षण कूमरक्षण गोलक्षण अजाठक्षण अश्वकक्षण स्त्री-पुरुष लक्षण यात्रा शकुन रंणयात्रा शकुन एवं साधारण असाधारण सभी प्रकारके शुभाशुभोका विवेचन अन्तसूंत होता था । स्वप्न और विभिन्न प्रकारके शकुनोको भी संहिता शाख्रमें स्थान दिया गया था 1 फछित ज्योतिषका यह अंग केवर पचाड़ ज्ञान तक ही सीमित नही था किन्तु समस्त सांस्कृतिक चिपयोकी भाछोचना भर निरूपणकाल भी इसमें शामिल हो यया था । संहिताशास्रका सबसे पहला अ्रन्थ सच ५०५ हूं० के वराइमिहिरका बृददत सहिता नामका अन्थ मिता है । इसके पश्चात् नारद सहिता रावणसदिता वशिष्ठ सहिता चसन्तराजशाकुन भदुचुतसागर भादि अन्थोकी रचना हुई । जैन ज्योतिषका विकास लैनायमकी दृष्टिसे ज्योतिपशाखरका विकास विद्यालुवादाज और परिक्मोसे हुआ है । समस्त ग्रणितत- सिद्धान्त ज्योपित परिकर्मोमें अकित है और अशड् निमित्तका विवेचन विद्यानुवादाहमें किया गया है । पट्खण्डागम घबलाटीको्मे रोड रवेत सैत्र सारभट दैत्य वैरोचन चरवदेव अभिजित् रोहण बल विजय नैकरत्य वरुण भयंमस और भाग्य ये पद सुहूत्त आाये हैं । सुहुर्तौकी नामावली बीरसेन स्वामीकी अपनी नहीं है किन्तु पूज॑ परम्परासे श्ठोकोको डन्होने डदु्टत किया है। अतः सुहू्त चर्चा पर्याप्त ग्ाचीन है । प्रश्नव्याकरणमें नच्षचोंके फछोका विशेष ढंगसे निरूपण करनेके छिए इनका कुछ ज क ६... बिकासमें उपकुछ भौर कुछोपकुलोमे विभाजन कर वणन किया है । यह ब्णन-प्रणाछ़ी सहिताशास्रके विकार्समें १--देखें--घवा टीका ४ जिल्द २१८ प्र० |
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