जातक कथाए | Jatak Kathaya

Jatak Kathaya by आनन्द कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सच्ता सपृत्त हू कौन जाने कहां पकड़ ले गए वसिट्क इसके लिए तैयार हो गया । उसका एक सात वर्ष का बालक यह सब सुन रहा था । जब चसिट्क ग्रपने वाप से दूसरे दिन चलने की वात तय करके लौटा तो वह बालक चुपचाप जाकर वाबा की खाद पर लेट गया । बड़े तड़के वर्सिट्रक ने गाडी जोती उसमें कुदाल टोकरी रखी श्रौर फिर चाप को ले जाकर वेठाया । गाडी चलने लगी तो वह बालक भी हठ करके उसमे बैठ गया । बसिट्क ने उसकी विशेष चिन्ता नहीं की क्योंकि वह निरा वालक था | गारी जब उ्मणान में पहुंच गई तो वसिद्रक उन दोनों को उसीमें छोड़कर स्वयं कुदाल-टोकरी लेकर उतर पड़ा श्रौर वहा से कुछ टूर हटकर एकान्त में एक वदा गउढ़ा सोदने लगा । दालक थोटी देर वाद घूमता-घामता उसी और जा निकला । बाप को गट्ढा पोदते देखकर वह बोला चावूजी यहा चालू या लकरदन्द तो है नहीं फिर श्राप व्यो उस तरह जमीन दो खोद रहे है ? रा ् दम त मर भू ि पाप सिर पर चढ़फर बोलता है । वसिटरक ने #.. ० भ् कबन्यफत न काल नम किन पिन सकल अन्न लापरवाडू 28 अ् एव से उसे चानक सम मकर रवाहा से कहा बटा




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