मुद्रा - शास्त्र | Mudraa Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११ | (२) मुद्रा का विकास संपत्तिशास्त्रक्नो तथा समाजशास्त्रश्नों ने पुराने झसभ्य लोगों की रहन-सहन लोक-प्रथा और जीवन-निर्वाह के तरीकों के विषय में बहुत शधिक खोज की है। पुराने विद्वानों का खयाल था कि बारंर की कठिनाइयों से ही प्राचीन जन-समाज मुद्रा तथा विनिमय-प्रणाली के विषम रूप का झवलंबन करने की श्योर झुका । दिल्‍्दी ब्राड ने लिखा है कि मुद्रा के प्रयोग से बाटर की तकलीफें दूर की गई । अब समय झआनेवाला है जब कि मुद्दा के दोषों को दूर करने के लिये साख का उद्योग किया जाय । झाजकल यह सिद्धांत बहुत ही मान्य हो रहा है कि साख का विस्तार सभ्यता की निशानी है। अधिक सभ्य देश बार्टर तथा मुद्रा के स्थान पर साख का ही प्रयोग करते हैं । परतु दोनों हो सिद्धांत सत्य से कुछ कुछ दूर हैं। अन्य लोक-प्रधाो तथा राजनीतिक संस्था्यों के सदश ही मुद्रा बार तथा साख बीजरूप से प्राचीन जन समाज में विद्यमान थे । कोई किसी दूसरे के नाश पर नही पैदा हुझा । कदाचित्‌ किसी का यह खयाल हो कि बाटंर से तंग शझाकर लोगों लिखित--मनी ऐंड सोशल प्राग्लम्ज । परिच्छेद ३ । काल माक्से लिखित- कैपिटल ऐंड फेपिट लिस्टक प्रोडक्शन । जेवन्ज़ लिखित-मनी ऐंड मेंकेनिज्य आवू एक्सचेन्ज । परिच्सेर १---चाठ १५। किंग्ले लिखित-मनी । परिच्छेद ३) निक्सन लिखित-मनी ऐंड मानिटरी प्राग्लम्ज । पृष्ठ १६-१७ १०७-९१०




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