स्मृति शास्त्र | Smriti Shastra

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Smriti Shastra by रामसहाय शर्मा - Ramsahay Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा चेतन मस्तिष्क और उसका काये ७ यूँगा बद्िरा होगा उसके उक्त मस्तिष्क केन्द्र भी नहींः होंगे यह भी देखा गया है कि बुत से योग्य व्यक्तियों के वेदाजों मे भी यदद चेतन्य केन्द्र कुछ २ उच्च दा में मिलते है। यदद . केन्द्र बहुत दी शीघ्र समुन्नत दो जाते हैं । जो कुछ नव दियु को चेतना होती दे । घद उसके दंददा परम्परागत अनुभव का दी प्रतिफल दे | बहुत सी मनोवैज्ञांनिक्र खोजों से ज्ञात हुआ है कि चेतन्य केन्द्र और कितनी मनोवूत्तियां ऐसी अवस्था में प्राप्त होती हैं जिनसे परस्परागत विकास का और भी निश्वय हो सकता हे । खेठने की चुत्ति स्पर्धा चूत्ति झगड़ाठूपन की छुत्ति इत्यादि । डा० मेड्गल ने १०० मनोवृत्तिओं से कुछ अधिक मानी हें । डा० गोडाडे ने अमेरिका में कितने दी कुटुस्बों की जांच की और चंषजों की मनोजूत्तिओं पर प्रयोग किये पक केलीकाक- कुटुम्ब के ४९६ व्यक्तियों में ३ वंशर्जों के अतिरिक्त दोष सब आपने प्रवेजों के अनुसार विख्यात और खुप्रतिष्टि थे । मेरे ध्रयोग भी इसी व्यवस्था को प्रमाणित करते हैं। मैंने ४० परिचारों को खोज की और ज्ञात हुआ दे कि इन परिवारों के चेद्ाज भी अपने पदों की मनोवुस्तिओं को लिये इुये थे। लेकिन इतना अवझ्प देखा गया कि वृत्तिओं का विकास व्रिशेषतः प्रतिवेस के अधिकार में होता है। पाठक यद्यपि अपने २ अनुभव पर ध्यान दंगे तो उन्हे ज्ञात हो सकता है कि. छोटे २ - बच्चे प्रायः अपने पूच्जों के भावों का अथवा कार्यों .का अनुकरण किया करते हें । लेखक को पूर्णतया स्मरण हे. कि में बालक्रीड़ा में अन्य बच्चों को वादी और प्रति वादी बना लिया करता था और उनके




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