महापुराण भाग ४ | Mahapuran Vol-4

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Mahapuran Vol-4 by देवेन्द्रकुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कम अं + 3३-०4 मे कप क--++म> 1७-4२ 2 पथ - स्वर्गीय पृण्यइल्लोका माता सूर्तिदंवी की पतविव्न. स्मृति. में स्व० साहू श्ञान्तिप्रसाद जन द्वारा संस्थापित एव े - उनकी धर्मंपत्नी स्वर्गीया श्रीमती रमा जन हारा संपोषित भारतीय ज्ञानपीठ मृतिदेवी जैन ग्रन्यथमाला इस प्रन्यमाला के भ्रन्तर्गत प्राकृत, सस्‍्क्ृत, अपश्ष श्ञ, हिग्दी, कन्मड़, तमिल आदि प्राचीन भाषाज्रों मे उपलब्ध आगमिक, दाशनिऊ, पौराणिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक आदि विधिध-विषयक जैन-साहित्य का अनुसन्धानपूर्ण सम्पाइन तथा उसके मूल झौर यथासम्भव अन॒वाद ग्रादि-के साथ प्रकाशन हो रहा है । जैन-भण्डारो- की सुचियाँ, शिललिख-सग्रह, कला एवं स्थापत्य; विशिष्ट घिद्वानो के अध्ययन-प्रन्य भौर लोकहितकांरी जैन... साहित्य-प्रन्थ भी .इसी। प्रन्थमाला मे प्रकाशित हो रहे हैं । ५] [1] ग्रन्थमाला सम्पादक , ,- 7:५४ । : पिद्धान्ताचार्य प कलाबाचद्ध शास्त्री ।. | - डॉ० ज्योतिप्रसाद जन ' ए [ फ प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ बी45-47, कनोंट प्लेस, नयी दिहली-110001 मूद्रक पूजा प्रेस, क्यू 52 नवीन शाहदरा, दिल्ली-32 श्टे >> < ४ ०५, 1 प्र स्थापना : फाल्गुत कृष्ण 9: वीर लि० 2470, विक्रम स० 2000,.18फरवेरी 1944 सर्वाधिकार सुरक्षित ; « ध




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