सूक्ति सुधाकर | Sukti Sudhakar

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Sukti Sudhakar by घनश्यामदास जालान - Ghanshyamdas Jalan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# श्रीविष्णुसूक्ति # श्३े की. >क3+०करीक ३-० कमिक, हम -००क रि0-०-७- ७-०७ है ७ ५०-किककट, विलासबिक्रान्तपरावराल्य॑ नमथदातिक्षणणे कृतक्षणम्‌ । धरने मदीयं तव पादपछ्ूजं कदा नु साक्षात्कवाणि चक्षुपा॥# कंदा पुनः शह्नस्थाड्कल्पकध्वजारविन्दाह्ुशवज़लाज्छनम्‌ | त्रिविक्रम त्वच्चरणाम्बुजह॒य॑ मदीयमूर्द्धानमलड्डरिष्यति ॥२९॥|# विराजमानोज्ज्वलपीतवाससं सितातसीछनसमामलच्छविम्‌ । निमप्रनामि तनुमध्यम्नुन्नतं विशालवक्षःख्यलशोमिलक्षणम्‌ ॥# ५ (बे शुभ ५ #(ए चकासत॑ ज्याक्रिणककंशः शुभैश्चतुर्भिराजानुविलम्बिभिश्ुजे! । ७ (१ ५ 6 ५८५ प्रियावतंसोत्पलकणभृूषणइलथालकाबन्धविमदेशंसिमिः ३१७ उदग्रपीनांसविलम्बिकुण्डलालकावलीजन्धुग्कम्बुकन्धरस्‌ ै नापनेवाले और प्रणतकी पीड़ाकी हरनेमे ही अपना प्रत्वेक क्षण लगानेवाले मेरे पर्मधन आपके पादपड्ढजको, नेन्रोसे मे कब प्रत्यक्ष देखूँगा १? ॥ २८ ॥ हे वामन | झद्भू) चक्र। कल्पदक्ष, व्वजा, कमल; अड्डुद्, वच्र आदि शुम चिहाँवाले आपके चरणयुगल) मेरे मस्तकको कब अलछ्ुत करेंगे ॥ २९ ॥ जिनके अज्ञॉपर निर्मल पीताम्बर शोभा पा रहा है, जिनकी अमर इ्यामल कान्ति प्रफुल्ठित अतसी-पुग्पफे समान सुन्दर है, जिनका देह ऊँचा, नामि गम्भीर; कटिदेश ( कमर ) सूक्ष्म और विशाल वक्ष स्थल श्रीवत्सचिहसे सुश्नोभित हो रद्दया है [ ऐसे आपको में कब अपनी सेवाद्वारा प्रसन्न करूँगा ? ]॥ ३० ॥ जो प्रियतमा छब्मी- के शिरोभूपषण, कमछदलादि कर्मभूपर्णो तथा शिथिक अल्कबन्धक्े विमर्दकी सूचना देनेवाले हैं, [ अति कोमल होते हुए भी ] झाज्जघनुपकी प्रत्यश्याके चिहोंसे कठोर हो गये है, ऐसे आज़ानुल्म्बी मुन्दर चार भुजदण्डोसे सुझोमित होनेवाडे आपको [ में कय प्रसन्न कर सर्कगा ?] ॥३१॥ उन्नत और पुष्ट कर्धोपर लय्कते हुए कुण्डल तथा अलकोसे जिनकी # टोआटयन्दासन्वोत्राच, शों० 33, उक्त शप्शृ६ 1




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