ध्यान सम्प्रदाय | Dhyan Sampraday

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Dhyan Sampraday  by डॉ. भरतसिंह उपाध्याय - Dr. Bharatsingh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओपिवर्म॑ ध्यावनसम्पदाय के संस्यापष दर मुझसे क्या घाहते हो कि मैं दुम्हारे लिए कह ? उम्होंते डसझं पूछा । प्रेम कयांयू ने बिशुसते हुए कहा, 'मश्ते । मुझे यम की ध्राम्दि महीँ है। मेरे मम को प्राप पा कर झ्ाम्त करें । बोधिषर्म मे कठोरठापूर्यक उसे उत्तर दिया, प्पवे सत्र को तिक्राप्त कर यहां मुझे दै । मैं उसे एार्ठ करूगा। सगु-कढ|ग ने प्रोर जी रोते हुए कद्दा “मैं प्पमे मत को छंसे सिगाक्त रुर प्रापको दे सकठा हूं ? इस पर डुछ गरम होते हुए भौर उस पर हुपा करते हुए मोजिश्म में उससे बहा तो मैं तेरे मस को प्ाम्त कर चुका हूँ?” तत्दाप्त रगु-स्शंगूको झागीत भपुमव हुई । रपतके सारे सम्देह टूर हो मे ! दौद्धिश संपर्प सदा के लिए मिट पये । बोधिधर्म है उसे प्रपता शिप्य बनाया प्रोर, बेसा क्र कहा जा चुढ़ा है रसे 'हुए हे! माम दिया। हुए-के स्यात-सम्प्रदाय के चीम में दितीय पर्मतायश्र हुए । बोषिषम के पास जो बुद्ध घा, बह घब उतने हुए-के को दे दिया । प्रव छब का भ चीनियों को बीजियों $ लिए करमा भा। भीमी परम्पश में पुरक्तित लेखों $ प्रभुप्तार बोधिपर्म मे प्रपने धिप्प हुए-के से कहा पा, भारत से इस पूर्वी देश में धारा हू भौर मैंते देशा है कि इस 'भीत देश मे ममृष्य महायान बोठ पम भी भोर प्रविक प्रबए हैं। पैसे दूर तब समुद्दी माता ही है प्रौर रेयिप्तानों म भटषा हू, बैपस इस उद्ृष्य के लिए ऊ्ि मुझे बहीं प्रषिरारी सम्पत्ति सिले हिस्हें मैं म्पना प्रमुभव प्रेषित कर सर' । जब सढ़ मुझे इप्ः उपयुक्त प्रथथर गे मिस मैं मो रहा जंधे हि मैं बोसमे में ससमर्ष पूणा होऊ | प्रद मुझे ठुप मिस पये हो । पें शुप्दें मद दे रहा हु घोर मेरी इच्छा प्रस्ताव पूरी हो घड़ी है।! उपयु ज्त विगररण के प्रतिरितः हमें बोशिषम के पीदन पोर स्यतिस्व के गम्दस्प में प्रषिद् हुए शात ही है। बद्दा जाता है कि थीन सै प्र्यात करते ये पूर्व जग्रोने प्रपने दिप्पों को युृसवाया घोर उनसे बहा, हम मेरे जाने का समय प्रा गया है घौर मैं याद पागसा चाहता हूँ रि हुरदारी झ्साप्तियों गया है 1 उबसे पट्स हाप्रो-फु सामह इताय विष्य उनहें खामने प्रापा भौर बोसा, मरी तप में सत्य विधि ध्ोौर नियप दोनों से परे है। सत्य थे खघरएा वा मावे यदी है।” दृस पर बोभिपम में उससे बहा 'गुस्दें मेरी टयपा शाप है । इसमे गाए मिथुणी ह्युप्‌ बिह भाई घोर बोषी, जा मैं धर्मता (, साय डा) गे बस 7एव बार दर्भम रोता है, प्िश्रसी गहीं । जभापिप्य मैं उससे कष्मा लसुस्दें मेरा संस प्रापा है।” तामोन्यू शामझ एक धाय एिप्प इसके एाइ बोपिपम के एपनै भाषा भौए घोता “बातों मह्माभूत पूप्प घौर एगव्‌ हैं पोर हइसौ बार पदराग्प ( रुप देणा, संड़ा शेश्हार भौर रिशत ) मी । मेरी




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