बन्दनवार | Bandhanvar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शम्भूदयाल सक्सेना - Shambhudayal Saxena
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ बिवाहिदा झुमारी
तरह, दैसे मारी शता झपने फूलों का हर माछी को उतार देती हे ।
उसने श्पने मन के मन्दिर में बंघन्त दी मूर्ति चित्रित कर रक््खोंथी ।
बह उसकी झांखों का बन्दी था और उसके निराणे शैशब भर सरल मोशेपन
का दास |
शदाश्षिनौ के मां नहीं बिमाता मो न पो । था केबन एक पिता |
पिठा के झांण्न '्त्रे ठसके वूछरे बदन बा माई ने कमी श्पमौ हँसी से
अहोकित नहीं किप दा | दर ठठ पर की पग्रकेली दीप शिका थी।
मीम शौर शाम कौ हावा से प्रान्द्वादित और बगीले से पिरा हुआ ठसके
पिठा का पर मर्ध्पि कस्व का छाठा झ्राभम था । शबाकिनी शाकुन्तला
पी। मृग-द्लोता ठसने पाल रफ्शा था । लताझों का ठसने सोच-सोअकर
गट्टा रकला था | कमी उसके एक सस्ती सो थो । उसका नाम था माक्षिती |
बड़ी दितेपिणी,बड़ी प्यारी और बढ़ी स्ने इशीकश्षा | बच्षपम की उसड़ी वह सखी
एंड प्रघुर स्मृति छोड़कर झपने माई के छाय कहीं अली गई पी । बरपों के
परदे में उस स्मृति-पट को मरना कर दिया था । ठग दिनों बसस्त ही उसके
मनाजगत का हुढंशु पा ।
(हो ]
उत्का दिदाइ कह हुआ था । भौ साल की लड़डी के सामने
ख्यपह साक् कौडप्न का शहढ़ा कहां अंबता हे ! तिस पर बसन्त मदरपू
डी हर झणौसा, शुस॒दिनी की तरए संद्रोच शक कपाठ दी हाइ भोला
और सरोद ढो दरइ सुझुमार भा । उसके समेह में मृबुशता थी, श्वमाब में
श्र
User Reviews
No Reviews | Add Yours...