बन्दनवार | Bandhanvar

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Bandhanvar by शम्भूदयाल सक्सेना - Shambhudayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ बिवाहिदा झुमारी तरह, दैसे मारी शता झपने फूलों का हर माछी को उतार देती हे । उसने श्पने मन के मन्दिर में बंघन्त दी मूर्ति चित्रित कर रक्‍्खोंथी । बह उसकी झांखों का बन्दी था और उसके निराणे शैशब भर सरल मोशेपन का दास | शदाश्षिनौ के मां नहीं बिमाता मो न पो । था केबन एक पिता | पिठा के झांण्न '्त्रे ठसके वूछरे बदन बा माई ने कमी श्पमौ हँसी से अहोकित नहीं किप दा | दर ठठ पर की पग्रकेली दीप शिका थी। मीम शौर शाम कौ हावा से प्रान्द्वादित और बगीले से पिरा हुआ ठसके पिठा का पर मर्ध्पि कस्व का छाठा झ्राभम था । शबाकिनी शाकुन्तला पी। मृग-द्लोता ठसने पाल रफ्शा था । लताझों का ठसने सोच-सोअकर गट्टा रकला था | कमी उसके एक सस्ती सो थो । उसका नाम था माक्षिती | बड़ी दितेपिणी,बड़ी प्यारी और बढ़ी स्ने इशीकश्षा | बच्षपम की उसड़ी वह सखी एंड प्रघुर स्मृति छोड़कर झपने माई के छाय कहीं अली गई पी । बरपों के परदे में उस स्मृति-पट को मरना कर दिया था । ठग दिनों बसस्त ही उसके मनाजगत का हुढंशु पा । (हो ] उत्का दिदाइ कह हुआ था । भौ साल की लड़डी के सामने ख्यपह साक् कौडप्न का शहढ़ा कहां अंबता हे ! तिस पर बसन्त मदरपू डी हर झणौसा, शुस॒दिनी की तरए संद्रोच शक कपाठ दी हाइ भोला और सरोद ढो दरइ सुझुमार भा । उसके समेह में मृबुशता थी, श्वमाब में श्र




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