भारत के स्त्री - रत्न वैदिक काल भाग 1 | Bharat Ke Stri Ratna Vaidik Kaal Bhag 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious, समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.07 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
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शंकरलाल वर्मा - Shankarlal Verma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९ ) हम ऊपर यह देख चुके हे कि भारतवर्ष में स्त्रियां अविवाहित रह सकती थी । कन्याओं का विवाह भी होता था परन्तु इतनी कम उम्प्र में नद्दी जितनी मे कि आजकल होता है । रूप गूण और कुल में समान वर को ही कन्या दी जाती थी । बाल-विवाह और अनमेल विवाह तो हमारी अधोगति के जमाने में ही प्रचलित हुए है। कन्या के लग्न के सम्बन्ध मे मनु भगवान कहते है-- ज्ीणि वर्षाएयुदीक्षेत कुमायुतुमती सती । ऊ्चे तु कालादेतस्मादिदेत सदशं पतिम॥। (मनु ९-९०) अर्थात्--कन्था रजस्वला होने पर तीन वर्ष तक पति की खोज करती रहे और अपने योग्य पति को प्राप्त करे । इन्ही मनूजी ने यह भी कहा है कि ऋतुमती कन्या भले ही जीवन भर घर मे कुमारी रहे परन्तु गुणह्वीन पुरुष से कदापि शादी न करे । स्त्री-जाति का आदर करने के लिए मनृस्मृति मे खास तौर पर उपदेदय दिया गया है । कहा है कि जहाँ स्त्रियों का आदर होता हूँ वहाँ देवताओं का निवास होता है जहाँ उनका निरादर होता है वहा सभी शुभ क्रियायें निष्फल होती हे । पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ कसा सम्बन्ध रखना चाहिए यह बताने के लिए स्मृतिकार लिखते हे--जिस कुल में स्त्री पुरुष से और पुरुष स्त्री से सदा प्रसन्न रहते हैं उस कुछ में आनन्द कीति और लक्ष्मी निवास करती हे और जहाँ उन दोनो मे लड़ाई-झगड़ा या विरोध होता है वहाँ दुख भौर दारिद्र हमेशा बसते है । प्राचीन काल के वैद्य भी आरोग्य की दृष्टि से बाल-विवाह का निषेध करते थे । सुश्रुत मे लिखा हैं--सोलह वरष॑ से कम उम्र वाली स्त्री से पच्चीस वर्ष से कम उम्प्र वाला पुरुष यदि गर्भ-स्थापना करे तो गर्भ कोख में ही कप्ट पाता है--अर्थात्.. गर्भ-पात हो जाता हे।
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