अन्धा चाँद | Andha Chand

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Andha Chand by मुनि रूपचन्द्र - Muni Roopchandr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० धरती का छाडला स्वग के देवता का बलिदान चाहता है। उसकी अज्ञात्त ज्वाला मं अपना सत्र कुछ होम कर और तो क्या, अपती ज़िंदगी का भी वीरान बनाया उसकी सोखली जडा म अपना खून सीच सीचकर दुनिया वी आखा मे उसे भगवान्‌ बनाया पर आज वह वरदान रूप मं ओर बुठ भी नही, केवल इसाय का सम्मान चाहता है। उस नही चाहिए वह देवत्व जिसम स्वच्छदता हा, विकास हो ओर पृज्यता के नाम पर मानवत्ता का उपहास हो कितु सदेहा की स्याही से पुता हुआ भौर उसकी अरथी के नीचे एक मासूम शिशु की तरह जुता हुआ बहू उससे केवछ एहसान की पहचान चाहता है । उसने दस लिया कि धरती क्या है ओर आसमान वया है ? और उसने जान छिया कि इसान क्या है और भगवान्‌ क्या है २ धरती राख म ल्पिटा हुआ वह अगारा है जिसने कि इस चाँद और युरज को जलना सिखाया है, भाधा चोद बडे




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