वर्जनाओं को लाँघते हुए | Varjanaon Ko Langhate Hue
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डेड लाइन
प्रेम प्रकाश
सतपाल, एस० पी० आनन्द, सत्ती या पाली--मरनवाले के ही नाम थे।
जब मैं इस घर मै ब्याहकर आई थी तो सामाजिक सबध मे वह मेरा देवर
था--आँगन मे गेद से खेलनेवाला, छोटी-छोटी बात पर रूठनेवाला और जो
भी सब्जी बनती, न खानेवाला लेकिन भावनात्मक सबध स वह मरा बंटा था,
भाई और प्रेमी भी।
जी० ए० करके एक साल की बेकारी के बाद सत्ती को नौकरी मिले
और कुडमाई हुए अभी पूरा साल भी नहीं बीता था कि गले मे हो रही खारिश
का नाम कैसर बन गया जिसकी रिपोर्ट देते हुए रिश्तदारी म॑ मामा लगते डॉ०
पुरी की पूरी चाँद पर पसीने की बूँदे चमकने लगी थी। उन्हांने मेरे और
आनन्द साहिब के कथे पर हाथ रखकर कहा था “बेटा, छह महीने बाद यह
अपना नहीं रहेगा। इलाज का कोई लाभ नहीं। यदि पैसे खर्चना ही चाहते हो
तो कहीं धर्मार्थ लगा दो। मात्र नाम के लिए दवा मे देता रहूँगा।'' लेकिन
डॉक्टर पुरी को क्या मालूम कि बिना कोई चारा किए जीना कितना मुश्किल
होता है। शाम के समय मैने सत्रह हजार रुपए वाली साझे खाते की पासबुक
उसके वीर (भाई) के आगे रखकर कहा “यह पेसा हम किसके लिए
बचाएँगे 2 !
डेड लाइन + 25
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