द्वादश चरित्र संग्रह | Dvadash Charitr Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ताजा सरस बनाकर भोजन, आदर सहित जिमाया। इस प्रकार उस ठग से कई दिन, रह कर आदर पाया |।३६।। लीला तू जन्मी जिस अवसर, पट भूषण नहीं लाया। विवाह हुवा जब था विदेश, मोसारा नहीं पहिनाया 1|४० | | अय लीला ! एकाकी मुझको, है प्राणों से प्यारी। तेरी मामी कहती निशिदिन, भाणी कहां हमारी ||४१।। सासु और श्वसुर से लीला, अनुनय अर्ज गुजारी। मामाजी के घर जाऊँ जो, अनुमति मिले तुम्हारी ।।४२।। जावो भले ही खुशी खुशी पर, पीछी जल्दी आना। बिठा रथ में लीलावती को, हो गया धूर्त रवाना।|४३।। उलट पंथ अटवी मे आकर, किया रूप विकराल | लीलावती भयभीत हो गई, देख दूसरी चाल ||४४।। विषयांध विहृवल हो कहे अब, किया मैं जो कुछ काम। मेरी इच्छा पूरण करदे, जो चाहे आराम |॥|४५।। मामा होकर बोल रहे हो, तज कुल की मर्याद। आँख दिखा डाकू कहे सुनले, बन्द करदे बकवास |।|४६।। किससे कर रही बात, कौन मामा, किसकी भाणेज। बुद्धि बल से लाया तुझको, करण सुन्दरी सेज।|४७।| वस्त्राभूषण छीन उसे ले चला, विहड़ बन मांय। रथारुढ़ हुई लीला सोचे, करना कौन उपाय ||४८।। शील रतन का यत्न करूंगी, चाहे कुछ हो जाय। संकट शमन इसी से हो, जिनवाणी रही बताय।।४६।| [19 ]




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