शुभ संयोग | Shubh Sanyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ उयाग | २३8
नन्दन स्ट्रीद में कमन्ा का मकान था। धहो पूजा क्रे कमरे में उस समय
कीर्तन हो रहा घा--
साधव, कत तोर करव बड़ाई 1
उपभा दोदर फ्ह्वृव ककरा हम
कहितहूँ अधिक सजाई ॥
जयीं सिरि्घंड सौरभ अति दुरलभ
तबों पुनि काठ कठोरे।
जमों जगदीस निस्ाकर तओं पुनि
एकहि पच्छ उजोरे ॥
फीर्तनिया कीर्तन कर रहे थे । उनके साथ दो सोग ढोल-मजीरा थजा रहे पे ।
उनके पीछे कमला राधाक्ृष्ण को मूति की तरफ मूह किये हाथ थोड़े बैठी थी ।
आँखें बंद थी । कीर्तन के ताज पर वह धोरे-धौरे सिर हिलातो जा रहो थी |
तभी अचानक गिरि दोड़ता हुआ आया और बोला--माठा षी, माता पी ।
इस पुकार पर भावों कमला का ध्यावे ट्वटा। उन्होंते पीछे मुह कर पुछा-
वया है गिदि ?
गिरि वोला--माता जी, मालिक आये हैं ।
“मालिक !
कमला को बड़ा आश्चर्य हुआ | पह सहसा समझ ने धक्की कि अब या करे 1
लेकिन जयसुन्दर बावू लव तक झूता खटखटाते हुए वहाँ पहुँच गये ।
जययुन्दर थावू को देख कर कमला सड़ी हो गयी । उसने जययुन्दर यावू की
तरफ देखते हुए पुछा--आप ? बचातक ?ै
++बयों, नही आना चाहिए ?
फमसला ने उस वात का उत्तर न दे कर कहां--चलिए, हम दूसरे कमरे में
जाये ।
जयमुन्दर बाबू कमला का अनुसरण करते हुए चले ओर बोने--नाहक पवढा
गयी । वया मैं जूता पहत कर तुम्हारे पूजा के कमरे में चला जाता ?
कमला ने इसपय कोई उत्तर नही दिया ।
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