पाला सद्द महण्णवो | Pala Sadda Mahannavo

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Pala Sadda Mahannavo by हरगोविन्ददास - Hargovind Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) डक्त वेद-साथा प्राचीन होने पर भी बह वैदिक युग में जन-साधारण की कध्य भापा न थी, ऋषि-लोगों की साहित्य-माषा थी। उस समय जन-साधारण में वैदिक भाषा के अचुरूप अनेक प्रादेशिक भाषाएँ ॥ “आकर के रुप से प्रचछ्ित थी। इन प्रादेशिक भाषाओं में से एक ने परिमार्जित द्ोकर चैदिक साहित्य मे स्थान पाया है। ऊपर बेदिक युग से पूर्व काल में आए हुए प्रथम दुछ के जिन आयों के मध्यदेश के चारों तरफ के प्रदेशों में उपनवेशों प्राहत-भाषानरो का हा ब्य उल्लेख किया गया ह्टै उन्होंने बैदिक युग अथपा उसके पूर्व काल में अपने-अपने प्रदेशों की कथ्य हर 5 नर भाषाओं में, दूसरे दर के आयों की वेद-सचना की तरद, किसी साहित्य की रचना नहीं वी थी। फ कं ६०्गे इससे उन प्रादेशिक आये भाषाओं का तात्कालिक साहित्य में कोई निद्शन न रहने से उनके के प्राचीन रूपों का सपुर्णे छोष हो गया है। वैदिक काल की और इसके पूे की उन समस्त कंध्य भाषाओं को सर मियरसन ने प्राथमिक प्राकृत (20157 11500 ए०) चाम दिया है। यही भाकृत भाषा-समृह का प्रथम स्वर (119 ४४४०) है.। इसका समय सिस्त-पूषे २००० से खिस्त-पूरव ६०० तक का निर्दि्ट किया गया है.। प्रथम स्तर की ये समस्त प्राकृत भाषाएँ खर और व्यध्जन आदि के उच्जारण में तथा विभक्तियों के प्रयोग में बैदिफ भाषा के अनुरुप थीं। इससे ये भाषाएँ विमक्ति-वहुछ (87701010) कही जादी है । वैदिक युग में जो प्रदेशिक आकृत भाषाएँ कथ्य रूप से प्रचदित थीं, उनमे परबर्ति-काड से अनेक परिवर्तन हुए जिनमे ऋ, ऋ आदि खरों का, शब्दों के अन्तिम व्यव्जनों का, संयुक्त व्यम्जनों का तथा विभक्ति और वचन-समृह का छोप या रुपान्तर मुख्य हैं। इन परिवतेनों से ये कथ्य भाषाएँ प्रचुर परिमाण मे रुपान्तरित हुईं। इस तरह ट्वितोय स्तर प्रकृत-आापाप्रो का हितीय+१००0 ४४8०) की प्राकृत भाषाओं की उलत्ति हुई। द्वितीय स्तर की ये भाषाएँ जैन और बौद्ध, जार (विल्तयूे धमे के प्रचार के समय से अर्थात्‌ खिस्त-पू्षे पह्ठ शताव्दी से लेकर खिस्तीय नवम या द्शम शताब्दी ६००से छिल्तावद.. *न्‍्त प्चलित रहीं। भगवान्‌ महावीर और बुद्धदेब के समग्र ये समस्त प्रादेशिक प्राकृत भाषाएँ, ध्०्णे अपने द्वितीय स्तर के आकार में, भिन्न-भिन्न प्रदेशों में कथ्य भाषा के तौर पर व्यवह्नत होती थीं। उन्‍्दोंने अपने सिद्धान्तों का उपदेश इन्हीं कथ्य प्राकृत भाषाओं मे से एक मे दिया था। इतना दी नहीं; बल्कि बुद्धदेव ने अपना उपदेश संस्छत भापा में न छिखरुर कथ्य प्राकृत भाषा मे लिखने के लिए. अपने शिष्यो को आदिश दिया था। इस रह प्राकत भाषाओं का क्रश साहित्य की भाषाओं मे परिणत होने का घृत्रपात हुआ, जिसके फढस्तरुप पश्चिम सगध और सूरसेन देश के मध्यवर्ती अदेश में प्रचस्ित कथ्य भाषा से जैनों के हर ; की अधे- मागधी और पू्े मगध में प्रचलित लोक-भाषा से चौद्ध घमे-अन्थों की पाढी भाषा उसन्न हुई। पादी भापा के उत्पत्ति-र के सम्बन्ध मे पचास विद्वानों का जो मतमेद्‌ है. उसका विचार हम जागे जा कर करेंगे। खिस्ताव्द से २४० के सम्राट अशोक ने बुद्धदेब के उपदेशों को भिन्न-मिन्न अवेशों में वहाँ-बहों की विभिन्न प्रादेशिक प्राकत साषाओं में हि श्न अशोक शिलाक्षेखों मे द्वितीय सदर की आकृषत भाषाओं के असदिग्ध सर्व-प्राचीन निदशन संरक्षित है। दिन सर सष्य भाग से--प्राय खिस्तीय पंच शत्ताब्दी के पूचे में भिन्न-मिन्न प्रदेशों की अपभंश भाषाओं की उत्पत्ति हुई स्तर की भाषाओं में चतुर्थी विभक्ति का, सब विभक्तियों के ट्विक्चनों का और आख्यात की अधिकांश विभक्तियों ओ क होने पर भी विभक्तियों का प्रयोग अधिक मात्रा मे विद्यमान था! इससे इस स्वर की भाषाएँ 2 जला जादी हैं। को भाषाएँ भरी पिभक्ति-बहुल कही सर मियसेन यह सिद्धान्त 1] हे झा सर म्ियसेन ने य न्त किया है कि घुनिक भारतीय आये साषाओं की उत्पत्ति द्वितीय स्तर दी पऊत भाषाओं से, खासकर उसके ह परों को दर्द $ से, खांस शेष भाग से प्रचलित विविध अपश्रश भाषाओं से हुई हे और आधुनिक भाषाओं को तृत्तीय प्राकृत भाषाओं का एत्तोय स्तर रे की प्राकृतत (ए४क्ताश'ए 1६051, ५१३ ३ कह कर निर्देश किया है इन भाषाओं की उत्पत्ति 3 र | पथ ३ ॥ इनका थे. भाषापरों वो उत्तत्त.. फिभक्तियों का छोप हुआ! है, एवं भाषाओं दी कह श कक बट है दि इनमें अधिक्ाश विभक्तिन्‍्बहुछ न होकर विभक्तियों (बिस्ताहद ६०० ओघधक स्वत्तन्त्र शच्दों का व्यवहार हुछ न होकर विभक्तियों के क 1धय९४ ००४०४) कही जाती ह्वै। हुआ है। इससे ये विश्लेषणशील भाषाएँ (5 एक एाठ्कों जिस प्रादेशिक अपन्रश ञ पश्चत से जिस आधुरि शोपक में दिया जायगा। स आधुनिक भारतीय जायें भाणा की उत्पत्ति हुईं है. उसका विवरण आगे 'अपन्र॑शः




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