चतुशतकम | Catuhsatakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
1३) दाशंनिक साहित्य
योगाचार श्र विज्ञानवाद--महायान के दार्शनिक साहित्य की भूमिका में
अज्ञापारमिता सुत्रों का श्रमूल्य योगदान है। संक्षेप में कहा जाय तो
उन्हें हम प्रस्थापक ग्रन्थ कह सकते हैं। इन सूत्रों के अ्रनुसार बोधिसत्व को
समस्त धर्मो में तरात्म्य श्रथवा धर्मशुन्यता को देखना चाहिए। इस सिद्धान्त
ने शुन्यवाद तथा योगाचार श्रौर विज्ञानवाद की भूमिका खड़ी कर दी। इससे
एक भोर जहाँ यह बात स्पष्ट होती है कि सकल धर्मों का स्वरूप शून्यतात्मक है
वहाँ दूसरी ओर यह भी ध्वनित होता है कि इसमें चित्त का प्राधान्य है। प्रथम
“विकल्प से शुत्यवाद को सिद्धि की गई और द्वितीय विकल्प से योगाचार तथा
विज्ञानवाद का जन्म हुआ ।
योगाचार योग और श्राचार शब्द का मिश्वित रूप है। शमथ झौर विपश्यना
'को प्राप्त कराने वाले मार्ग को योग कहते हैं। और उस योग के मार्ग का
आचरण “योगाचार” है*'। और विज्ञानवाद वह है जो सकल मैधातुक को
'चित्तमात्र श्रथवा विज्ञानमात्र प्रदर्शित करे । इनके पुर्व सौत्रान्तिकों ने 'सूक्षम
विज्ञान! और प्रज्ञप्तिवादियों ने 'मूल विज्ञान की कल्पना कर ली थी । इसके
बाद तिब्बती सूत्रों का योगदान है जिनका समय ई. पु. प्रथम शताब्दी से ई.
तृतीय शताब्दी तक निर्धारित किया जाता है। तिब्बती जें-य॑ शद-प-के सिद्धान्त
के श्रनुसार योगाचार के तीन मूल सूत्र हैं--सन्धि निर्मोचन, लंकावतार तथा
'घनव्युह । सन्धिनिर्मोचन के अ्रनुसार भगवातु बुद्ध तीन धर्म-चक्रों के प्रवर्तक
थे--( १) चतुस्सत्य धर्मचक्रप्रवर्तत जो हीनयान में प्रचलित है, (२) श्रलक्षणत्व
'धर्मचक्रप्रवर्तंत जिसे प्रज्ञापारमिताश्रों में श्रभिव्यक्त किया गया है, और ( हं )
'प्रमार्थविनिश्चय धर्मचक्रप्रवर्तन जो उक्त सूत्रों में सन्निहित है तथा योगाचार का
अप्रतिपादक है। तिब्बती सूत्रों के बाद शास्त्रीय युग में योगाचार विज्ञानवाद
का प्रवेश हुआ जिसे मंत्रेय, श्रसंग और वसुबन्धु आदि श्राचार्यों ने पुष्पित और
'फलित किया । इनके बाद श्रौर भी भेद-प्रभेद दिखाई देते हैं ।
मेज्रेयनाथ ओर असंग-योगाचार-विज्ञानवाद के प्रस्थापक के रूप में मैत्रेय
नाथ का स्मरण किया जाता है। श्रां च्वाँग के अनुसार मेत्रेय ने योगाचारशास्र,
१. शमथविपश्यनायुगनद्धवाहो मार्गों योग इति योग लक्षणम् । शमथ इति
समाधिरुच्यते । विपश्थना सम्यग्दर्शन लक्षणा। यथा युगनद्धीबलीवदों वह
वस्तथा यो मार्ग सम्य्दर्शनवाही स योग: । तेवाचरतीति योगाचार उच्यते ।
ब्रह्मसुत्र, २, २ २८ पर भाष्य ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...