भारतीय स्त्रियाँ | Bharatiy Striyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्रियोँ पा थादोलन < गन मिलने लगा । उस समय जो लोग नाइट या सरदार होते ऐ, उन्हें चिशेषत अपनी स्री का और साधारणत स्त्री मात्र फा प्रथेण आदर फरना पडता था। थे उनकी सथ प्यार के कर्ण प्रथा विपक्तियों आदि रो रद्ा फ्रना अपना परम पर्तव्य प्रानते थे | उस युग में चहाँ स्त्रियों का महत्व जितना अधिक यहा, उतना क्दानित्‌ पहले फ्मी नहीं पढ़ा था। ओर, यही पारण था कि उस युग में वहाँ झनेयः ऐसी स्तरियाँ होने लगी थीं, जो शिक्षा, चिक्त्सि और धर्म प्रचार आदि कार्मो में पुदर्षो को ही भॉति वाम करती थीं। जर्मनी के अनेफ नगरो में उन्हें पुरुषों के ही समान व्यापार झादि दरते या पूर्ण अधिकार प्राप्त था, और फ्रास में तो उन पेशो पर एस ध्रफार से स्त्रियों का दो पक्छ्म अधिकार था, जो स्त्रियों के लिये विशेष रूप खे उपयुक्त समझे जाते थे। ईसाई धर्म का प्रचार परने के लिये जो अनेक घडे यडे युद्ध हुए, उनके कारण योरप के अनेक देशों में पुरुषों की सस्या चछुत घट गई थी। उस अवसर पर यड़े रडे काम स्त्रियों ने ही सभाले थे, और बहुत अच्छी तरह सँमाले थे। परतु इस वारसी स्तरियों का घद झाद्र-मान और महत्व स्थायी ने रह सका, और उनऊी स्थिति फिर विगडने खगी। योरप के जिस पाल फो लोग ' पुनरुत्थान-पाल” कहा करते है, उस समय लोगों की डच्छू खलता घडुत यढ़ गई, और झनाचार भी बह्ुत अधिक फैल गया । यद्यपि उन दिनों चीच-यीच में इघर-उधर शक




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