अन्तस्तल | Antastal

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Antastal by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हा - और वास का बल्ला 1 उन्होंने गलोके छीरसे अकर गेंद ऋषपक ली हरा फौट पहने थे और सिर पर सल्मे;की ज्यों; थी! छोटा सा मुह था और खुनहरे वाल फ्त्रेपर छद्दरा रहे थे । उम्र कितनी थी सो नहीं घता सकता, जिस बातकों समभने का शान नहीं था--आवश्यकता नहीं थी, अब बह कैले याद आ सकती है? वे मेरे आखों में गढ़ गये । मैंने आगे दढ कर बहा- तुम सेलोगे?” “उन्होंने कह-/खिलाओगे ?” मैंने सिल्ा लिया | बहीं पहला दिन था ।इस ज्न्‍्ममें चद्दी पहली मुलाकात थी। उसी दिन से हम एक हुए । महल्ले भें उनफा घर था | पर थे उसमें फभी रहे. नहीं थे। उनके पिता विदेशमे नौकरी करते थे । उन्हींके साथ चे भी चहों रहते थे । अर वे वहीं स्कुलमे भर्ती हुए, मैं फेल हो कर, एक साल पीछे 'आ रहा 1 हम छोग पक वसाथ पढने छगे। पक ध्रेणीमें चेठने ल>गे। कैसे सुन्दर थे “दिन थे, यह फहना असम्भव है | एक वेस्च पर चंठते थे। उनका दिसाक अच्छाथा 1 मैं उसमे कमजोर था 1वे ५० और कुका 3ते थे मैं मास्टर की नजर वचा- कि + 1 श्प्य




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