नारी श्रृंगार | Nari Shrangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नारी श्वगार पप्ठभूमि और परम्परा / ५ पथक अपन गुणों के कारण आस्वादन के योग्य हा--तो वह रूप ही मधुर कहलाता है। यदि सगोत म प्रत्येक स्वर नत्य म प्रत्येक अगहार चित्र म प्रत्यक वण और रेखा रूपवती के शरीर म प्रत्येक गुण स्वय अपन गुणा से आज्धाद उत्पन करत हैं ता इन अवयवों के सम्मिलन से उत्प न रूप में माघुय गुण जाग उच्ता है। रूप क आस्वादन मे अगर समग्र रूपवान पदाध का भास्वादन किया जाता है तो भी हमारी सौंदय भावना प्रत्येक अवयव और खण्ड का अवगाहत बरती है। इसे स्पष्ट करते हुए डॉ० हरद्वारी लाल शर्मा लिखत हैं. वह प्रत्यक खण्ड के अवगाहन स कभी अखण्ड रूप वो ओर कभी अखण्ड रूप का आास्वादन करे खण्डा की भोर लोटती है। हमारे अवधान की यह पुन पुन होने वाली आकपण- विक्पण जिया स्वयं चित्त म चमत्कार उत्पन्न करती है। निश्चय ही चमत्कार मधुर हाता हैं। किसी समग्र म अवयदों का यहू चमत्कारी गुण माघु्य कहलाता है। इस ही ढा० शर्मा और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं. अवयवा से गुम्फित समग्र मे प्रत्यक खण्ड विभिन होते हुए भी विरोधी नही होता अर्यात कोई अवयव समग्र के विपरीत भावना को उत्पन नहीं करता । अवयवों के इस उचित और विरोधी वियास का गोस्वामी ने सुदर कहा है। रूपगोस्वामी अवयवों के उचित मस्यान से उत्पन अविराधी सर्मावत प्रमाव को रूप का प्राण मानते हैं। सजीव रूप म यदि अवयंव इस प्रकार गुम्फित हैं कि उनम तरलता जीवन बा ओज और तरग वी प्रतीति होती है तो हम रूप म लावण्य का अनुभव होता है। बहुघा हम सुदरी के शरीर म अवयवा की तरगायमान योजना की सावष्य बह हैं यदि यद्दी गति और ओज--तरग और तरलता वी अनुभूति मज्यामितिक रुप भ होती है तो इसे रूप का उदारता गुण माना जाता है। लावष्य और उदारता ये रूप में जीवन का अनुभव कराने वाल गुण हूँ। कवि श्रीहप दमयन्ती के रुप का दणन करते हुए कहते हैं कि बहू अपने उदार गुणा के कारण घय है जिनसे नल भी स्वय भाइप्ट हो गया है क्याकि चाह्रिका की इससे बढ़कर महिमा कया होगी कि इससे समुद्र भी स्वय तरल हो सता है । रूप म आक्पण वा मुख्य वारण यही लादप्य और उदारता नामव गण होते हैं जिनसे हमे जीवन का साक्षात्‌ अनुभव होता है। १. कोर हररारी लाल शर्मा--सौंदर्य शास्त्र चू० ७५१




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