रहप्रश्नीय सूत्रम् | Rajaprashniy Sutram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी श्री ब्रजलाल जी महाराज - Swami Shri Brajalal JI Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)होता था । सूत्रक्ृतांग में 'कुक्कयय” और '“वेणपलाशिय' वबासुरियों का वर्णन है, जो दांतों में, वाये हाथ से पकड
कर वीणा की भाति दाहिने हाथ से बजाई जाती थी ।*” भगवतीसूत्र की टीका मे४ १), जीवाभिगरम“*, जम्बूद्वीप-
प्रज्॒प्ति* 7, निशीथसूत्र* *, आदि में भी अनेक वाद्यों का उल्लेख है। वृहत्कल्पभाष्य४* में भभा, मुकुन्द, महल,
कडम्ब, भललरी, हुडुक्क, कास्यताल, काहल, तलिमा, वश, पणव, शंख इन बारह वाद्यो का उल्लेख है।
रामायण* * व महाभारत” में मड्डक, पटह, वश, विपजछ्ची, मृदग, पणव, डिंडिम, आडंवर और कलशी
का उल्लेख है ।
भारत के नाट्यशास्त्र मे, ततवाद्यों में, विपझ्ची और चित्रा को मुख्य और कच्छपी एवं घोपका को
उनका अंगभूत माना है।” चित्रवीणा सात तत्रियों वाली होती थी और वे तंत्रिया अगुुलियों से बजाई जाती
थी | विपज्ची में नौ तत्रिया होती थी, जिसका वादन 'कोण' अर्थात् वीणावादन के दण्ड के द्वारा किया जाता
था ।** यद्यपि भारत के कच्छेपी और घोषका के स्वरूप के सम्बन्ध में कुछ भी प्रकाश नही डाला है, किन्तु संगीत-
रत्नाकर ग्रन्थ के अनुसार घोषणा एकतंत्री वाली वीणा थी** और कच्छुपी सम्भव है, सात तंत्रियों से कम
वाली वीणा हो ।
'संगीतदामोदर' में तत के २९ प्रकार बताये है--अलावणी, ब्रह्मवीणा, किन्नरी, लघुकिन्नरी, विपज्ची,
वल्लकी, ज्येष्ठा, चित्रा, घोषवली, जपा, हस्तिका, कुनजिका, कर्मी, सारंगी, पटिवादिती, त्रिशवी, शतचन्द्री,
नकुलौष्ठी, ढसवी, ऊदंबरी, पिनाकी, नि.शक, शुष्फल, गदावारणहस्त, रुद्र, स्वरमणमल', कपिलास, मधुस्यंदी
और घोपा ।$ * आयारचूला** और निशीथ* 3 में तत के अन्तर्गत वीणा, विपञ्ची, वद्धिसग, तुणय, पवण,
तुम्बविणिया, ढ कुण, और जोडय ये आठ वाद्य लिये है ।
वितत--चर्म से आबद्ध वाद्य वितत है। गीत और वाद्य के साथ ताल' एवं लय के प्रदर्शन करने हेतु इन
वाद्यों का प्रयोग होता था । इनमें मृदग, पवण [तन्त्रीयुक्त अवनद्य वाद्य), ददुर [कलश के आकार वाला चर्म
7१०, सूत्रक्रताग--४ २. ७.
५१. भगवतीसूत्र टीका---५. ४. पृष्ठ-२१६ अ
५२. जीवाभिगम-+३, प्रृष्ठ-१४५-अ
५३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति---२, पृष्ठउ-१००-अ आदि
५४. निशीथसूत्र--१७. १३५-१३८
५५. वृहत्कल्पभाष्यपीठिका--२४ वृत्ति
५६. रामायण---५.१०.३८ आदि
५७. महाभारत---७.८२.४
५८. विपंची चैव चित्रा च दारवीष्वंगसंजिते !
कृच्छपीघोषकादीनि प्रत्यंगानि तथैव च ॥| -->भरतताट्य-३३ । १५
५९. सप्ततन्त्री भवेत् चित्रा विवंची नवतन्त्रिका ।
विपंची कोणवाद्या स्याच्चित्रा चांगुलिवादना ॥ ->भरतनाटय-२९ । ११४
६०. घोषकश्चैकतन्त्रिका । +संगीतरत्नाकर, वाद्याध्याय, पृष्ठ २४८
६१. प्राचीन भारत के वाद्ययन्त्र--कल्याण (हिन्दुसंस्क्ृति अद्भू) पृष्ठ ७२१-७२२ से उद्धृत
६२. आयारचूला---११1॥ २
६३. निसीहज्कयणं---१७ । १३८
User Reviews
No Reviews | Add Yours...