मानव जीवन | Manav Jeevan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्७ सदाचार 1 कारण अनीवियुक्त न हो ओर जो सत्य तथा न्यायके आधारपर स्थित हो 1 एक बात और है। हमें सदाचारी बननेके लिए केवल सत्यनिष्ठा ओर न्यायपरायणता ही यथेष्ट नहीं है । हममें केवल सत्य और व्यायके प्राति [निष्ठा ही नहीं होनी चाहिए बल्कि तदनुसार कार्य्य करनेका साहस और बढ भी होना चाहिए । हमें एसा आचरण करना चाहिए जिसमें सद्भाव हो । हमारे ददयमें सदा कोई सत्कार््थ करनेकी इच्छा होनी चाहिए और उप्त सक्कार््यकों अपना लक्ष्य और उद्देश्य बनाकर हमें कराव्य-क्षेत्रमं उतर पड़ना चाहिए 1 वहुतसे लोग परम सत्यनिष्ठ हुआ करते हैं पर तो भी उद्देश्य ओर कर्तैब्यके अभावके कारण वे संसारमें कोई ऐसा काम नहीं करते जिसे हम आदी कह सकें ओर जिसके कारण लोगोंको अनुकरण करनेकी उत्तेजना मिले । सत्यनिष्ठ होकर हम केबल इतना ही कर सकते हैं कि कोई बुरा काम न करें; लेकिन अच्छा काम करनेके लिए कर्तब्यपरायण होनेकी आवश्यकता होती है। जब तक मनुष्य सदा सत्कार््य न करता रहे तब तक उसका सदाचार स्थिर नहीं रह सकता । जो लोग संसार और मानव-जाततिका कल्याण करना चाहते हों उन्हें सदा सत्काय्य करते रहना चाहिए | आजकल लोगोंम॑ प्रायः विद्तता या बुद्धिमत्ताकी कमी नहीं होती | पर क्‍या केवल इन्हीं बातोंसे मनुष्य संसारमें महत््य अथवा आदर प्राप्त कर सकता है ? हमारी समझमें तो वही बुद्धिमान्‌, विद्वान्‌ या श्रेष्ठ कह- रानेके योग्य है जिसमें सत्यनिष्ठाके साथ साथ सत्काय्य करनेकी प्रबल इच्छा भी हो ओर यथासाध्य वह अपनी इस इच्छाकी पूर्तिंका प्रयत्न भी करता हो । गोसाई तुलसीदास, , महाराज शिवाजी, जस्टिस महादेव गोविन्द्‌ रानंड आदि क्या कभी केवल अपनी विद्वत्ता या बुद्धि मत्ताके कारण ही इतनी अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते थे १ कभी नहीं। उनकी प्रतिष्ठाका मुख्य कारण यही था कि थे छोगोंके उपक्रारके लिए सतकाय्य करते थे । माटिन लूथरका जम्मनीके सप्रस्त राजाओंसे रे मा. जी, श्




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